Breaking News: हाल के दिनों में, एलएंडटी के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन (L&T Chairman S.N. Subrahmanyan) के एक विवादास्पद बयान ने भारत के वर्क कल्चर के बारे में राष्ट्रीय चर्चा को जन्म दिया है। असल में सुब्रह्मण्यन ने अपने एक कमेंट में कर्मचारियों को ने सप्ताह में 90 घंटे काम करने की सलाह दी। इस बयान में उन्हें कर्मचारियों को एक कथित वीडियो संबोधन में यह कहते हुए देखा गया कि, “आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक घूर सकते हैं,” इसलिए उन्होंने उनसे घर पर कम और ऑफिस में अधिक समय बिताने का आग्रह किया। हालाँकि, मुद्दा सिर्फ़ अनुचित बयान नहीं है, बल्कि भारत में लंबे समय तक काम करने पर जुनूनी ध्यान के बारे में यह गहरा चिंतन है। वर्तमान वर्क कल्चर में एक बड़ी खामी यह है कि लंबे समय तक काम करने को आदर्श माना जाता है, न कि क्वालिटी को।
ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि अगर कोई भी एम्प्लॉई ज्यादा घंटे काम कर रहा है, तो वो असलियत में बहुत डेडिकेटेड है, भले ही वो ऑफिस में कम समय देने वाले एम्प्लोईस के जितना ही काम कर रहा हो। इस जुनून ने एक ऐसा वर्क एटमॉस्फेयर बनाया है, जहाँ कर्मचारियों से लंबे समय तक काम करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन प्रोडक्टिविटी पर ध्यान नहीं दिया जाता। देश की सबसे बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के तौर पर, एलएंडटी की टिप्पणी का राष्ट्रीय स्तर पर असर पड़ा।
मजदूरों का शोषण और बिजनेस लीडर्स का पाखंड
यह स्पष्ट है कि भारत की बिजनेस संस्कृति पाखंड से भरी हुई है। नारायण मूर्ति और भाविश अग्रवाल जैसे लोगों ने भी लंबे समय तक काम करने का समर्थन किया है, जबकि वे धनी व्यवसायी हैं और दूसरों के श्रम से लाभ उठाते हैं। सुब्रह्मण्यन की टिप्पणी कि वे चाहते हैं कि कर्मचारी रविवार को काम करें। इसके अलावा, मूर्ति का 2023 का बयान जिसमें उन्होंने सप्ताह में 70 घंटे काम करने की हिदायत दी थी। बिजनेस लीडर्स की उच्च आय और उनके कर्मचारियों के स्थिर वेतन के बीच असमानता भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में व्याप्त शोषण को दर्शाती है।
टॉक्सिक वर्क कल्चर और इसके परिणाम
कई रिपोर्ट्स से पता चला है कि सप्ताह में 55 घंटे से अधिक काम करने वाले कर्मचारियों को हार्ट डिजीज और बर्नआउट का ज्यादा खतरा होता है। ऑफिस वर्क से जुड़ी टेंशन में वृद्धि 2024 के सर्वे में भी देखी गयी है, जिसमें दिखाया गया है कि 62% भारतीय कर्मचारियों ने बर्नआउट का अनुभव किया है – वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक। इन डरावने आँकड़ों के बावजूद, ज्यादा घण्टे काम करने के लिए कहा जाता है। जिसमें अक्सर कर्मचारियों को बिना एक्स्ट्रा पेमेंट के ओवरटाइम के साथ-साथ ऑफ़िस के बाद भी संपर्क किया जाता है और काम करने के लिए कहा जाता है। वहीँ शहरी कर्मचारियों का बढ़ता कर्ज और बढ़ते क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट भी ऐसे सिस्टम की कमियों का संकेत हैं।
प्रोडक्टिविटी पर ध्यान दें, घंटों पर नहीं
सुब्रमण्यन की टिप्पणी से शुरू हुई बातचीत से उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए, न कि केवल काम के घंटे बढ़ाने पर। बिज़नेस लीडर्स को यह पहचानने की आवश्यकता है कि लम्बे समय तक सफल होना चाहते हैं, तो ज्यादा घंटे नहीं बल्कि बेहतर क्वालिटी वाला काम है। इसलिए “समय पर” काम करने के बजाय आउटपुट पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कर्मचारियों के कल्याण में निवेश करना, उचित मार्गदर्शन प्रदान करना, तथा स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देना, कर्मचारियों पर मनमाने घंटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए दबाव डालने से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
इंटरनेशनल मॉडल क्या कहता है?
ओवरटाइम काम के लिए उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। यदि कंपनियाँ चाहती हैं कि उनके कर्मचारी स्टैण्डर्ड 40-45 घंटों से अधिक काम करें, तो उन्हें अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों के अनुसार उन्हें ओवरटाइम का भुगतान करना चाहिए। इसके लिए भारत और खासकर हमारे देश के बड़े बिज़नेस लीडर फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भी सीख ले सकते हैं, जहाँ श्रम कानून (labour laws) यह सुनिश्चित करते हैं कि कर्मचारियों से काम के घंटों के बाद कांटेक्ट न किया जाये, जब तक कि उन्हें मुआवजा न दिया जाए।
Latest News In Hindi
आखिर क्यों बंद हुई हिंडनबर्ग रिसर्च; दबाव या साजिश?

A research-based writer, content strategist, and the voice behind Dhara Live. With 7+ years of experience in print and digital media, I specialize in creating stories that are not just informative, but also engaging, thought-provoking, and search-friendly.
Over the years, I’ve worked with media houses like Divya Himachal, created academic content for Chandigarh University, and written everything from YouTube explainers to press releases. But what drives me the most is writing content that sparks awareness, curiosity, and real conversations.
At Dhara Live, I focus on trending topics—from geopolitics, health, and finance to AI—all explained in details, the way we naturally speak and think. I believe every reader deserves content that is accurate, easy to understand, and never boring.