Latest News Today: कुछ समय पहले अतुल सुभाष नाम के व्यक्ति का सुसाइड का मामला सामने आया था। इसने एक बार फिर घरेलू हिंसा के खिलाफ भारत के कानूनी प्रावधानों (धारा 498A) से जुड़ी जटिलताओं और परिणामों को उजागर किया। 34 वर्षीय सॉफ्टवेयर पेशेवर अतुल की असामयिक मौत ने देश भर में आक्रोश और बहस को जन्म दिया है, जिससे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 498ए के दुरुपयोग और झूठे आरोपों का सामना करने वाले पुरुषों के हक़ पर सवाल उठ रहे हैं।
बेंगलुरू के एक पेशेवर अतुल सुभाष को कथित तौर पर अपनी अलग रह रही पत्नी निकिता सिंघानिया के कारण कई वर्षों तक मानसिक परेशानी का सामना करने के बाद अपने घर में मृत पाया गया। अपनी जान लेने से पहले, अतुल ने घरेलू हिंसा का सामना करने वाले पुरुषों की वकालत करने वाले एक गैर सरकारी संगठन सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (Save Indian Family Foundation) से संपर्क किया, जिसमें राष्ट्रपति और न्यायपालिका को संबोधित वीडियो, दस्तावेज और पत्र सहित महत्वपूर्ण सबूतों के साथ एक ईमेल साझा किया। अपने अंतिम शब्दों में, उन्होंने न्याय की उम्मीद जताई और अपनी पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों के खिलाफ खुद को निर्दोष बताया।
एनजीओ द्वारा पुलिस को सचेत करने के प्रयासों के बावजूद, बहुत देर हो चुकी थी। जब अधिकारी अतुल के घर में घुसे, तो उन्हें उसकी छाती पर पिन किया हुआ एक A4 शीट मिला, जिस पर लिखा था, “न्याय मिलना चाहिए।” अतुल दिसंबर 2024 में अपने मराठाहल्ली अपार्टमेंट में मृत पाए गए। उन्होंने 24 पन्नों का एक डेथ नोट और 81 मिनट का एक वीडियो छोड़ा, जिसमें उनकी अलग रह रही पत्नी निकिता सिंघानिया और उनके परिवार द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था। इस मामले ने सोशल मीडिया पर तेज़ी से तूल पकड़ा, #JusticeForAtulSubhash और #MeToo जैसे हैशटैग ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन और कैंडल मार्च को बढ़ावा दिया।
अतुल की कानूनी लड़ाई
अतुल की मौत के बाद, उनके भाई विकास कुमार ने बेंगलुरु में निकिता, उनकी माँ, भाई और चाचा के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कराया। हालाँकि, निकिता के चाचा ने आरोपों को निराधार बताया और आश्वासन दिया था कि निकिता अपनी यात्रा से लौटने के बाद जवाब देंगी। लेकिन निकिता और उसके परिवार ने अलग-अलग शहरों में जाकर अधिकारियों से बचने की कोशिश की और इसके लिए पूरी फॅमिली केवल एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप के ज़रिए बातचीत कर रही थी, ताकि पुलिस से बचा जा सके। उनके प्रयासों के बावजूद, पुलिस ने निकिता द्वारा किए गए कॉल के ज़रिए उन्हें ट्रैक किया, जिसके कारण उन्हें गिरफ़्तार किया गया।
अपने बचाव में, निकिता और उसके परिवार ने सभी आरोपों से इनकार किया, दावा किया कि अतुल ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, दहेज की मांग की और उसके जीवन पर वित्तीय नियंत्रण रखा। इसके विपरीत, अतुल के साक्ष्य से पता चलता है कि निकिता ने स्वेच्छा से उनके वित्तीय निवेश में योगदान दिया और अपनी संपत्तियों पर पूरा नियंत्रण बनाए रखा।
क्या है धारा 498A का इतिहास?
धारा 498A की आवश्यकता 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में दहेज हत्या की घटनाओं से उत्पन्न हुई, जहाँ शशि बाला और तरविंदर कौर जैसी महिलाओं ने लगातार दहेज की माँग के कारण अपनी जान गँवा दी। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने सख्त कानूनों के लिए अभियान चलाया, जिसके परिणामस्वरूप विवाहित महिलाओं के खिलाफ क्रूरता को अपराध बनाने के लिए धारा 498A बनाई गयी थी।
इस मामले के केंद्र में धारा 498A है, जो विवाहित महिलाओं को उनके पतियों और ससुराल वालों द्वारा क्रूरता और दहेज से संबंधित उत्पीड़न से बचाने के लिए 1983 में लागू की गयी थी। यह एक कानूनी प्रावधान है, जिसके तहत बिना वारंट के तत्काल गिरफ्तारी की जा सकती है और बिना अदालत के हस्तक्षेप के जमानत नहीं हो सकती।मूल रूप से दहेज हत्या और घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में धारा 498A के तहत कई महिलाओं ने इसका दुरुपयोग किया है। इस धारा के तहत पुरुषों को, झूठे आरोप गलत गिरफ्तारी, सामाजिक कलंक और डिप्रेशन का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि अतुल के मामले में हुआ।
2022-23 में भी हुए ऐसे हादसे
यह मामला अन्य उदाहरणों की याद दिलाता है जहाँ वैवाहिक कलह के कारण दुखद परिणाम सामने आए हैं। 2023 में, हैदराबाद में एक तकनीकी विशेषज्ञ ने आत्महत्या कर ली, उसने एक नोट छोड़ा जिसमें अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर उत्पीड़न और झूठे दहेज के आरोप लगाए गए थे। इसी तरह, 2022 में, पुणे में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने वित्तीय विवादों को लेकर अपने जीवनसाथी द्वारा मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए अपनी जान दे दी।
हालाँकि, पिछले कुछ सालों में इसका बहुत गलत इस्तेमाल हुआ है। धारा 498A के पीछे का उद्देश्य कमज़ोर महिलाओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए भी सरकार को कुछ करना चाहिए, ताकि मेल कम्युनिटी के साथ अन्याय न हो। इसके लिए पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से पहले, दोनों पक्षों को शिकायतों को दूर करने और विवादों में मध्यस्थता करने के लिए परामर्श लेना चाहिए। वहीँ डायरेक्ट गिरफ़्तारी करने की बजाय, पहले पूरी जांच सुनिश्चित करनी चाहिए। वहीँ महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के लिए भी ऐसे कानून बनाए जाने चाहिए। क्योंकि न्याय को बनाए रखने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है, ताकि न तो महिलाएँ और न ही पुरुष कानूनी खामियों और झूठे आरोपों का शिकार हों।
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