Latest News In Hindi: Telangana में एक बड़ा हादसा हुआ, जहां एक अंडर-कंस्ट्रक्शन टनल (Telangana Tunnel Accident) के गिरने से 12 मजदूर फंस गए। रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है, लेकिन यह सिर्फ एक isolated एक्सीडेंट नहीं है। भारत में टनल, माइन और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में सिक्योरिटी स्टैंडर्ड को हमेशा इग्नोर किया जाता है और हमेशा ऐसे एक्सीडेंट होते हैं। सवाल यह है कि आखिर कब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी और सरकार कब तक इससे सबक नहीं लेगी?
Tunnel Accidents In India
यह पहली बार नहीं है जब टनल या माइनिंग साइट्स पर मजदूरों की जान खतरे में पड़ी हो।
- Silkyara Tunnel Collapse (Uttarakhand, 2023) – यह हादसा हर किसी को याद होगा, क्योंकि इसमें 41 मजदूर फंस गए थे और 17 दिन तक टनल में फंसे रहे। यह हादसा दिखाता है कि भारत में रेस्क्यू ऑपरेशन कितने धीमे होते हैं।
- Pune Tunnel Collapse (2022) – इस एक्सीडेंट में अंडर-कंस्ट्रक्शन टनल गिरने से 3 लोगों की मौत हो गयी थी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि स्ट्रक्चरल इंस्टैबिलिटी और सिक्योरिटी प्रोटोकॉल को इग्नोर किया गया था।
- Himachal Pradesh Tunnel Accident (2021) – इस एक्सीडेंट में मलबे में दबने से 4 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी। इसके लिए भी जियोलॉजिकल स्टडी में साबित हुआ कि खामियों की वजह से हादसा हुआ था।
- Jharkhand Illegal Mine Collapse (2019) – यहाँ अवैध खनन (illegal mining) के चलते 15 मजदूरों की मौत हो गई थी।
- Chhattisgarh Coal Mine Collapse (2018) – सुरक्षा उपायों की कमी के कारण 9 मजदूरों की जान गई। यह हादसा भी सिक्योरिटी मैनेजमेंट की कमी की वजह से हुआ था, रिपोर्ट्स में साबित हुआ था।
प्रॉफिट के चक्कर में मजदूरों की जिंदगी से खिलवाड़
भारत में टनल और माइनिंग साइट्स पर सेफ्टी प्रोटोकॉल अक्सर फॉलो नहीं किए जाते। कंपनियां प्रॉफिट बढ़ाने के चक्कर में सुरक्षा उपायों को नजरअंदाज कर देती हैं। नियम तो हैं, लेकिन इन्हें लागू करने वाले सरकारी विभाग सुस्त और भ्रष्टाचार से प्रभावित होते हैं! मजदूरों को अक्सर सेफ्टी हेलमेट, ऑक्सीजन सप्लाई, इमरजेंसी एग्जिट जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दी जातीं। कई टनल और खादानों की खुदाई से पहले geological stability की सही से जांच नहीं होती, जिससे ये हादसे बढ़ जाते हैं। भारत में माइनिंग और टनल रेस्क्यू ऑपरेशंस बेहद धीमे होते हैं, जिससे हादसे के बाद भी मजदूरों की जान बचाने में देरी होती है। कई बार सस्ते मटेरियल और अनप्रोफेशनल कॉन्ट्रैक्टर्स के चलते स्ट्रक्चरल फेल्योर होता है।
Tunnel & Mine Safety Laws?
सरकार को अब सिर्फ मुआवजा देने की जगह सख्त कदम उठाने की जरूरत है। नियमों को सख्त किया जाए और हर निर्माणाधीन साइट पर real-time safety audits हों। Emergency Rescue Teams हर टनल प्रोजेक्ट में हों, हाई-रिस्क साइट्स पर 24×7 बचाव टीमें और आधुनिक उपकरण तैनात किए जाएं। कोई भी टनल बनाने से पहले geotechnical risk assessment अनिवार्य हो। सिक्योरिटी स्टैंडर्ड का पालन न करने वाली कंपनियों और ठेकेदारों पर करोड़ों के जुर्माने और कानूनी कार्रवाई की जाए। हर मजदूर को PPE (helmet, mask, safety harness), ऑक्सीजन बैकअप और life insurance अनिवार्य रूप से दिया जाए। AI-powered sensors और automated monitoring systems का उपयोग किया जाए ताकि रियल-टाइम अलर्ट मिल सके। Independent Third-Party Safety Audits – सरकारी एजेंसियों पर निर्भर रहने के बजाय, private safety experts और international standards के अनुसार ऑडिट किया जाए।
विदेशों से सीखने की जरूरत?
जापान में हर टनल प्रोजेक्ट के लिए advance seismic monitoring और shock-resistant structures बनाए जाते हैं। Switzerland में टनल निर्माण में geological mapping और remote safety monitoring को अनिवार्य किया गया है, जिससे हादसे कम होते हैं। जर्मनी में कंस्ट्रक्शन सेफ्टी लॉ बेहद सख्त हैं, और कंपनियों के लिए real-time safety reporting मेंडटरी की गयी है। अमेरिका में Occupational Safety and Health Administration (OSHA) द्वारा टनल और माइनिंग इंडस्ट्री के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम और एक्सीडेंट प्रिवेंशन स्ट्रेटेजी लागू की गई हैं। वहीँ ऑस्ट्रेलिया में हाई रिस्क साइट पर रेस्क्यू robots और AI surveillance systems का उपयोग किया जाता है, जिससे दुर्घटना के समय तुरंत एक्शन लिया जा सके। भारत को भी इन देशों से सीखने की जरूरत है।
हर साल भारत में सैकड़ों मजदूर अपनी जान गंवा देते हैं, क्योंकि सरकार और कंपनियां सुरक्षा मानकों को गंभीरता से नहीं लेतीं। अब समय आ गया है कि सरकार इन हादसों को “दुर्घटना” मानकर छोड़ने के बजाय, स्थायी समाधान निकाले।
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