Tamil Nadu Budget 2025 Highlights: आज हम एक ऐसे मुद्दे पर बात करने वाले हैं जो सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा सवाल है: हिंदी बनाम तमिल और राज्य भाषाओं का मुद्दा (Tamil Nadu Hindi protest)। क्या तमिलनाडु सच में हिंदी के खिलाफ है? क्या यह सिर्फ एक पॉलिटिकल लड़ाई है या इसका कोई बड़ा कल्चरल और इकनॉमिक इम्पैक्ट भी है? और सबसे बड़ा सवाल – क्या सिर्फ तमिलनाडु ही हिंदी को लेकर स्ट्रिक्ट है या और भी स्टेट्स हैं जो इसे एक्सेप्ट नहीं करते?
तमिलनाडु और हिंदी की लड़ाई की कहानी
तमिलनाडु में Two-Language Policy (Tamil + English) है, यानी कोई हिंदी नहीं, न स्कूलों में, न एडमिनिस्ट्रेशन में। Tamil Nadu Official Language Act, 1956 के तहत तमिल ही राज्य की एकमात्र ऑफिशियल लैंग्वेज है। यह लड़ाई आज की नहीं है, यह आज़ादी से भी पहले की लड़ाई है। 1937 में जब पहली बार हिंदी को स्कूल में लागू करने की कोशिश हुई थी। उस वक्त ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी को स्कूल सिलेबस में शामिल करने का प्लान बना था तो तमिल स्पीकर्स ने इस कदम का स्ट्रॉन्ग अपोजिशन किया और पहली बार भाषा को लेकर प्रोटेस्ट हुआ। रेलवे, UPSC, SSC, बैंकिंग एग्जाम्स में हिंदी स्पीकर्स को एडवांटेज मिलता है। तमिलनाडु का कहना है कि हिंदी का अनफेयर यूज़ तमिल स्टूडेंट्स के लिए नुकसानदायक है। NEET और JEE में हिंदी मीडियम स्टूडेंट्स को प्रायोरिटी मिलती है, जो तमिल स्टूडेंट्स के लिए प्रॉब्लम है।
1965 – सबसे बड़ा हिंदी विरोध आंदोलन
इस साल सरकार ने हिंदी को ऑफिशियल लैंग्वेज बनाने का प्लान किया, जिससे तमिलनाडु में मैसिव प्रोटेस्ट्स शुरू हो गए। कई स्टूडेंट्स ने आत्मदाह (self-immolation) तक किया। इसके बाद अंग्रेज़ी को ऑफिशियल लैंग्वेज बनाए रखने का डिसीजन लिया गया था।
1986 – राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का विरोध
जब राजीव गांधी सरकार ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में हिंदी को और ज्यादा प्रमोट करने की बात रखी, तब फिर से राज्य में प्रोटेस्ट हुए। तमिलनाडु ने इस पॉलिसी का स्ट्रॉन्गली अपोज़ किया और कहा कि राज्य में हिंदी कंपल्सरी नहीं होगी। उसके बाद से राज्य में दोबारा भाषा को लेकर डिस्कशन नहीं हुई।
2019 – NEP 2019 और थ्री-लैंग्वेज फॉर्मूला
लेकिन 2019 में मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का प्रपोजल दिया था। इस बार सिर्फ इसे लेकर सिर्फ आंदोलन नहीं हुए, बल्कि तमिलनाडु ने इस पॉलिसी को पूरी तरह रिजेक्ट कर दिया और अपनी दो-भाषा पॉलिसी (तमिल + इंग्लिश) जारी रखी।
Three-language Formula
अब 2025 में इस three-language formula ने दोबारा से तूल पकड़ ली है! तमिलनाडु अब भी हिंदी थोपने के खिलाफ मजबूती से खड़ा है। UPSC, बैंकिंग एग्जाम्स और गवर्नमेंट जॉब्स में हिंदी को अनफेयर प्रायोरिटी देने का विरोध हो रहा है। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा हिंदी का विरोध करते हैं, लेकिन तमिलनाडु का स्टैंड सबसे स्टॉन्ग है, क्योंकि वहाँ हिंदी बिल्कुल नहीं पढ़ाई जाती!
तमिलनाडु सिर्फ एजुकेशन और एडमिनिस्ट्रेशन में ही नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और AI में भी तमिल भाषा को प्रमोट करने के लिए काम कर रहा है। तमिलनाडु सरकार AI-बेस्ड वॉयस असिस्टेंट बना रही है, जिससे गवर्नमेंट सर्विसेज और बैंकिंग सेक्टर में तमिल का यूज़ बढ़े। तमिलनाडु डिजिटल कॉर्पोरेशन और IIT मद्रास AI-बेस्ड तमिल चैटबॉट्स बना रहे हैं, जिससे तमिल यूज़र्स को डिजिटल सॉल्यूशंस मिलें। इतना ही नहीं गूगल और माइक्रोसॉफ्ट तमिल NLP प्रोजेक्ट्स पर प्लानिंग चल रही है, तमिलनाडु ने ग्लोबल टेक कंपनियों से पार्टनरशिप करके तमिल AI टूल्स डेवलप करने की प्लानिंग की है। तमिलनाडु में EdTech और डिजिटल लर्निंग ऐप्स में तमिल सपोर्ट बढ़ाया जा रहा है। ये सब एफ़र्ट्स तमिलनाडु को यह इंश्योर करने में हेल्प कर रहे हैं कि लोग बिना हिंदी या इंग्लिश के भी डिजिटल वर्ल्ड का हिस्सा बन सकें! तमिलनाडु अकेला नहीं है! कई राज्यों ने अपनी भाषा को बचाने के लिए हिंदी के खिलाफ स्टैंड लिया है। लेकिन हर जगह रीजनल लैंग्वेज पॉलिसी अलग-अलग तरह से लागू की गई है। आइए देखते हैं:
West Bengal – बंगाली ऑफिशियल लैंग्वेज
West Bengal 1961 से बंगाली ऑफिशियल लैंग्वेज है। यहाँ भी हिंदी थोपने के खिलाफ स्ट्रॉन्ग रेजिस्टेंस हुआ था, खासकर एजुकेशन और एडमिनिस्ट्रेशन में। ममता बनर्जी हिंदी को प्रायोरिटी देने के खिलाफ, बंगाली को सरकारी काम में प्रमोट करती हैं। यहाँ तक कि UPSC और सेंट्रल एग्जाम्स में बंगाली ऑप्शन की डिमांड है।
Karnataka vs Hindi policy
यहाँ तो हिंदी साइनबोर्ड्स के खिलाफ प्रोटेस्ट हुआ है। Karnataka Official Language Act, 1963 के अनुसार कन्नड़ ही ऑफिशियल लैंग्वेज। कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश है कि सरकारी काम सिर्फ कन्नड़ में होना चाहिए। यहाँ 2017 में नम्मा मेट्रो हिंदी बेड़ा मूवमेंट हुआ था, जब बेंगलुरु मेट्रो में हिंदी साइनबोर्ड्स लगाने का विरोध हुआ। इसके अलावा सेंट्रल एग्जाम्स और बैंकिंग सेक्टर में हिंदी के बढ़ते प्रेशर के खिलाफ भी लड़ाई जारी है। Similarity Tamil Nadu में भी सरकारी काम में राज्य की भाषा को प्रायोरिटी देने की डिमांड की जा रही है।
केरल – मलयालम को गवर्नेंस में प्रायोरिटी
केरल में सिर्फ मलयालम ऑफिशियल भाषा है। स्कूलों में हिंदी अनिवार्य नहीं, इंग्लिश को ज्यादा प्रायोरिटी दी जाती है। यहाँ भी NEP 2020 का विरोध हुआ है, क्योंकि ये हिंदी को प्रमोट करता है। Similarity Tamil Nadu में हो रहा है, इंग्लिश को ज्यादा तवज्जो, और हिंदी को सरकारी कामों में नहीं शामिल करना चाहता।
पंजाब – पंजाबी को बचाने की कोशिश
पंजाब में भी Punjab Official Language Act, 1967 लागु है, जिसके तहत पंजाबी ही ऑफिशियल लैंग्वेज है। स्कूलों और सरकारी काम में हिंदी को बढ़ावा देने के खिलाफ यहाँ भी प्रोटेस्ट हो चुके हैं। गवर्नमेंट एग्जाम्स और डॉक्युमेंट्स में पंजाबी की डिमांड बढ़ी है। Similarity Tamil Nadu अपनी भाषा को एडमिनिस्ट्रेशन और एग्जाम्स में प्रमोट करने की मांग कर रहा है।
नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में लोकल लैंग्वेज को बढ़ावा
असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश – हिंदी के बजाय इंडिजिनस भाषाओं को प्रोमोट कर रहा है। education and administration में हिंदी को अनिवार्य करने की नीति के खिलाफ प्रोटेस्ट हो चुके हैं। UPSC और सेंट्रल एग्जाम्स में रीजनल लैंग्वेज ऑप्शन की डिमांड बढ़ गई है। Similarity Tamil Nadu में सरकारी एग्जाम्स और एडमिनिस्ट्रेशन में अपनी भाषा को priority दे रहा है।
तमिलनाडु का रुख इतना सख्त है। यहाँ Conflict का सबसे बड़ा कारण पॉलिटिकल और कल्चरल आइडेंटिटी है। तमिलनाडु का ड्रविड़ियन मूवमेंट हिंदी (Tamil Nadu Hindi protest) को नॉर्थ इंडियन डॉमिनेशन का पार्ट मानता है। स्टेट govt. का मानना है कि हिंदी से तमिल स्टूडेंट्स को गवर्नमेंट जॉब्स और एग्जाम्स में नुकसान होता है। ये सवाल अभी भी ओपन हैं, लेकिन एक बात साफ़ है – तमिलनाडु और अन्य राज्य हिंदी के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे! क्या तमिलनाडु का स्टैंड सही है? या हिंदी को पूरे भारत में स्वीकार किया जाना चाहिए?
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