Sustainable Development Goals: यूनेस्को (unesco) के अनुसार पिछले 50 सालों में साक्षरता दर में लगातार वृद्धि हुई है, लेकिन इसके बावजूद, दुनिया भर में अभी भी 773 मिलियन वयस्क (Adult) ऐसे हैं, जो पढ़ लिख नहीं सकते। उससे भी बड़ी बात यह है कि इनमें से ज्यादातर महिलाएँ हैं, लगभग 2 तिहाई के करीब। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अनपढ़ वयस्कों की आबादी करीब 28.7 करोड़ है। यह दुनिया में अशिक्षित लोगों का कुल 37 प्रतिशत है। हालाँकि भारत में साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों के लिए 82.14 प्रतिशत और महिलाओं के लिए 65.46 प्रतिशत है।
शिक्षा में मामले में बच्चे और किशोर
यूनेस्को सांख्यिकी संस्थान (UNESCO Institute for Statistics) के नए अनुमानों के अनुसार, 617 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर पढ़ने और गणित में न्यूनतम दक्षता स्तर {Minimum Proficiency Level (MPL)} भी अचीव नहीं कर पा रहे हैं। ये नंबर कितना बड़ा है, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि यह ब्राजील की 3 गुना आबादी के बराबर है, जो पढ़ने या फिर बेसिक मैथ को भी सॉल्व नहीं कर पा रहे।
Sustainable Development Goals
विश्व के सामने आज कई चुनौतियां हैं – गरीबी, भूख, असमानता, पर्यावरण का क्षरण, और अशांति। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने 17 सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) और 169 उद्देश्य तय किए। यह एक वैश्विक आह्वान है, जो सभी देशों और नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, समानता, और समृद्धि प्राप्त करने के लिए एक साथ काम करने के लिए प्रेरित करता है। इसी के तहत SDG-4 आता है, जिसका लक्ष्य 2030 तक सभी बच्चों को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा दिलवाना है।
SDG-4
2015 में, संयुक्त राष्ट्र ने 17 SDG तय किए थे जिनमें से एक SDG-4 था – “सभी के लिए अच्छी और समसामयिक शिक्षा।” इसके तहत यूनेस्को द्वारा 5 मुख्य टारगेट रखे गए हैं – नीति को आगे बढ़ाना, युवाओं के सीखने के माहौल को बदलना, शिक्षकों को सक्षम बनाना, युवाओं को सशक्त बनाना और संगठित करना, तथा स्थानीय स्तर पर शिक्षा के प्रति कार्रवाई में तेज़ी लाना है।
सतत विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality education for sustainable development) कोई नई चीज नहीं है। यह तो पुराने समय से चली आ रही है, जब हम ये सीखते थे कि कुदरत के साथ मिलकर कैसे जीना चाहते हैं, तो ये एक तरह से सतत विकास के लिए क्वालिटी एजुकेशन ही थी। लेकिन, औद्योगिक क्रांति के बाद हम ये भूल गए और विकास की दौड़ में हमने अपने पर्यावरण को ही बर्बाद कर दिया। अब, हम ये गलती सुधार रहे हैं और QESD की मदद से सतत विकास की तरफ जा रहे हैं।
SDG-4 की जरूरत क्यों?
असल में SDG-4 बहुत जरूरी है, क्योंकि कई अन्य कई वैश्विक लक्ष्य तभी प्राप्त हो पाएंगे, जब एसडीजी-4 को पूरा करेंगे। असल में यह लक्ष्य एक समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा और “सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों” को बढ़ावा देने की मांग करता है। इस लक्ष्य-4 को प्राप्त करने में कई चुनौतियाँ हैं, जैसे बुनियादी ढाँचे की कमी, कक्षा-रूम, फर्नीचर, स्वच्छता सुविधाएं और स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव देश के कई हिस्सों में अभी भी है। पाठ्यक्रम द्वारा निर्धारित शिक्षा की गुणवत्ता कभी-कभी नौकरी के बाजार की मांगों के साथ तालमेल नहीं बना पाती है और रटने की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से अक्सर छात्रों में आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देने में कमी आती है। इसके अलावा लड़कियों को अक्सर शैक्षणिक संस्थानों के भीतर और आसपास भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है।
भारत में बढ़ रही नामांकन दर (Increasing Enrolment Rates)
2019 तक, प्राथमिक (primary) में नामांकन दर 99.2% और माध्यमिक (Secondary) में नामांकन दर 88.3% थी। लेकिन, यह अभी भी वैश्विक लक्ष्य (Global SDG Goal) से कम है। और सबसे बड़ी बात है कि सिर्फ एनरोलमेंट रेट से सिर्फ बच्चों के नामांकन का पता चलता है, इससे यह पता नहीं चलता है कि बच्चे स्कूल जा भी रहे हैं या नहीं, और न ही यह पता चलता है कि वो पढ़ रहे हैं, या अच्छा सीख भी रहे हैं।
शिक्षा में लैंगिक असमानता
Sustainable Development Goals-4 के तहत लड़कियों और लड़कों दोनों को समान अधिकार देने का वैश्विक लक्ष्य रखा गया है। इस सन्दर्भ में अगर भारत को देखें तो देश में नामांकन दरें बड़ी हैं, लेकिन लिंग अंतर (Gender inequality) अभी भी है। माध्यमिक स्तर (secondary level) पर यह अंतर ज्यादा है।
दुनिया के टॉप एजुकेशन मॉडल से सीखने की जरूरत
कई रिसर्च ने अमेरिका को दुनिया के बेस्ट एजुकेशन सिस्टम में टॉप पर रखा है।
. इसकी खासियत की बात करें, तो यूएसए का curriculum बहुत flexible है, छात्रों को विभिन्न विषयों में से अपने पसंदीदा विषय चुनने की अनुमति देता है। ऐसा लचीला पाठ्यक्रम अधिक व्यक्तिगत सीखने और कौशल विकास की अनुमति देता है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहाँ पाठ्यक्रम सख्त है और छात्रों को केवल अपने चुनी हुई फील्ड पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है।
. यूएस ज्यादातर प्रैक्टिकल लर्निंग पर बेस्ड है, जिसमें टीचिंग, सेमिनार, केस स्टडी, प्रोजेक्ट और रिसर्च, इंटरैक्टिव एक्टिविटी पर जोर दिया जाता है। लेकिन इंडिया में lecture-based teaching और examinations पर ज्यादा फोकस है।
. आज भी भारत के ज्यादातर एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में प्रॉपर इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, जो कि एजुकेशन की क्वालिटी और बच्चों में सीखने में अंतर पैदा कर रहा है। इस मामले में अमेरिका भारत से कहीं आगे है। और यही वजह से है कि भारत में विदेशी बच्चों की संख्या बहुत कम है, जिससे इंडियन स्टूडेंट्स को डिफरेंट बैकग्राउंड के बच्चों से सीखने का एक्सपीरियंस नहीं मिलता।
निष्कर्ष
भारत अपनी शिक्षा प्रणाली में सुधार करने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। विदेशों की शिक्षा प्रणाली से प्रेरणा लेते हुए, भारत अपने छात्रों को बेहतर शिक्षा और भविष्य प्रदान करने की कोशिश कर रहा है। इस दिशा में भारत अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए अमेरिका जैसे दुनिया के बड़े अध्ययन स्थलों से सीख ले सकता है।
Sustainable Development Goals
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