Rabies Crisis In India: भारत में स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती पॉपुलेशन और उनके अटैक्स अब पब्लिक हेल्थ और सेफ्टी के लिए एक बड़ा इशू बन गए हैं। पिछले कुछ समय से गुरुग्राम जैसे बड़े शहरों में डॉग बाइट केसेस लगातार बढे हैं, जो इस प्रॉब्लम की सीरियसनेस को दिखाता है। सिर्फ रोड एक्सीडेंट ही नहीं, बल्कि कई लोग फियर और इनसिक्योरिटी महसूस कर रहे हैं, खासकर उन इलाकों में जहां स्ट्रीट डॉग्स का ज्यादा टेरर है।
हर साल 1.75 करोड़ डॉग बाइट, 20,000 मौतें
- रेबीज से डेथ रेट: WHO के डेटा के मुताबिक, हर साल 18,000 से 20,000 लोग रेबीज से मरते हैं। पूरी दुनिया में रेबीज की वजह से जितनी मौतें होती हैं, उनमें से सबसे ज्यादा यानी करीब 36% भारत में होती हैं।
- डॉग बाइट केसेस: भारत में करीब हर साल 1.75 करोड़ लोगों पर स्ट्रीट डॉग्स हमला करते हैं, और यह प्रॉब्लम गांव में ज्यादा है।
- बच्चों में बढ़ता रेबीज का खतरा: रेबीज के 30-60% केसेस 15 साल से कम उम्र के बच्चों में होते हैं, क्योंकि ज्यादातर बच्चों को जब छोटी उम्र में कुत्तों ने काटा होता है, तो इसे ज्यादातर फैमिली मेंबर इग्नोर कर देते हैं या नोटिस नहीं कर पाते और उन्हें रिपोर्ट भी नहीं किया जाता।
हर घंटे 1 से ज्यादा लोगों पर अटैक
- गुरुग्राम: साल 2024 में 10,067 डॉग बाइट केसेस रिपोर्ट हुए। ऐसे मामले हर साल लगातार बढे हैं, आप इस डाटा से समझ सकते हैं। जैसे 2023 में यह 5,259 केस आये थे, 2022 में 3,464 केस थे, और 2021 में सिर्फ 2,612 थे, जो पिछले साल बढ़कर 10 हज़ार से ज्यादा हो गए। यानी, हर घंटे 1 से ज्यादा लोग डॉग अटैक का शिकार हो रहे हैं!
- उत्तर प्रदेश: वहीँ उत्तर प्रदेश में हालत और भी ख़राब है, क्योंकि वहां अकेले 2024 में 45 लाख 65 हज़ार से ज्यादा लोग स्ट्रीट डॉग्स के अटैक्स का शिकार हुए, यानी हर रोज लगभग 12,506 लोगों को स्ट्रीट डॉग्स ने काटा।
- तमिलनाडु (मदुरै): तमिलनाडु भी इस रेस में पीछे नहीं था। 2024 में यहाँ 14,000 डॉग बाइट केस दर्ज हुए, जबकि 2023 में 13,000 मामले सामने आये थे।
- भोपाल: जनवरी-मार्च 2024 में 6,728 केसेस दर्ज हुए।
- इंदौर: 500-600 लोग हर दिन स्ट्रीट डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं, यानी सालाना 2 लाख+ मामले!
- चंडीगढ़: चंडीगढ़ में भी स्ट्रीट डॉग का कहर बहुत ज्यादा है, खासकर सेक्टर 18 और 38 में, जहाँ हर रोज़ लगभग 80 केस दर्ज हुए हैं।
9 साल के बच्चे की दर्दनाक मौत
कुछ दिन पहले सहारनपुर में 9 साल के बच्चे को स्ट्रीट डॉग्स के झुंड ने नोच-नोचकर मार डाला। इसी तरह औरंगाबाद में पिटबुल ने एक स्ट्रीट डॉग मदर पर हमला कर दिया, जिससे वह सीवियर इंजरी के साथ हॉस्पिटल में एडमिट हुई। ये इंसिडेंट्स दिखाते हैं कि पब्लिक सेफ्टी अब सीरियसली खतरे में है!
क्यों फेल हो रहा एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC)’ रूल?
स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती प्रॉब्लम को कंट्रोल करने के लिए केंद्र सरकार ने 2023 में ‘एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC)’ रूल्स लागू किए, जिनका टारगेट नसबंदी (sterilization) और वेक्सीनेशन से डॉग पॉपुलेशन को कंट्रोल करना था। नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम (NRCP) के तहत 2030 तक रेबीज फ्री इंडिया बनाने का प्लान है, लेकिन ग्राउंड लेवल पर इसका इम्पैक्ट अभी तक नहीं दिखा! तो क्या यह प्लान है सरकार का, जिस पर अभी तक ग्राउंड लेवल पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
एंटी-रेबीज वैक्सीन के बावजूद हो रही मौतें
केरल में हालात बदतर: साल 2020 में केरल में रेबीज की वजह से 5 मौतें हुई थीं, और 2024 में यह बढ़कर 26 हो गईं। वहीं, डॉग बाइट केसेस जो एक साल पहले 1 लाख 60 हज़ार के करीब थे, वो भी 2024 में बढ़कर 3,16,793 हो गए! यही नहीं केरल में ऐसे मामलों को लेकर बड़ा सवाल सामने आया है, यहाँ पर 2024 में कुत्ते के काटने की वजह से 6 लोगों को एंटी-रेबीज वैक्सीन दी गयी थी, लेकिन फिर भी उनकी मौत हो गई! तो क्या एंटी-रेबीज वैक्सीन काम की हैं भी या नहीं?
लोकल गवर्नमेंट की नाकामी, कचरा मैनेजमेंट में लापरवाही, और कम इंफॉर्मेशन के कारण स्ट्रीट डॉग्स की प्रॉब्लम डेली लाइफ में डिजास्टर बन चुकी है। प्रशासन को स्ट्रीट डॉग्स की sterilization और vaccination को फास्ट ट्रैक पर लाना होगा। और इसे मॉनिटर भी करना होगा, ताकि जनता को पता चले की कितना काम हुआ है। वहीँ कचरा मैनेजमेंट बेहतर किया जाए, ताकि स्ट्रीट डॉग्स के लिए फूड सोर्स कम हो। आप लोग भी इसमें कंट्रीब्यूट कर सकते हैं – स्ट्रीट डॉग्स को यूंही खाना न खिलाएं, क्योंकि अगर वही डॉग किसी को काट ले तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा, आप? पेट ओनर्स को सख्त रूल्स फॉलो करने चाहिए, खासकर पिटबुल और डेंजरस ब्रीड्स के मामले में।
स्ट्रीट डॉग्स और रेबीज का बढ़ता खतरा सिर्फ एक पॉलिटिकल या सोशल इशू नहीं, बल्कि एक नेशनल हेल्थ क्राइसिस बन चुका है। गवर्नमेंट पालिसी नाकाम हो रही हैं और पब्लिक की अनदेखी के चलते हर दिन हजारों लोग डॉग बाइट्स और रेबीज से जूझ रहे हैं। अगर जल्द एक्शन नहीं लिया गया, तो यह प्रॉब्लम आने वाले सालों में और खतरनाक हो सकती है!
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