Poverty in India: आज़ादी से अब तक (2024)
गरीबी को लेकर अगर भारत की बात करें, तो 1947 में जब भारत को आजादी मिली, तो इसकी जनसंख्या लगभग 34 करोड़ थी। उस वक्त भारत की साक्षरता दर 12% थी, यानी लगभग 4.1 करोड़ लोग पढ़े लिखे थे। आज़ादी के समय, वर्ल्ड जीडीपी में भारत का योगदान सिर्फ 3% था, लगभग 2.7 लाख करोड़ रुपये। और उस वक्त भारत के करीब 80% लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे थे।
इसके बाद, 1956 में जब गरीबी की संख्या को गंभीरता से गिना जाने लगा, तो प्रो. बी.एस. योजना आयोग के मिन्हास ने अनुमान लगाया कि लगभग 65 प्रतिशत भारतीय गरीब थे।
नीति आयोग की मानें, तो साल 2005-06 में भारत की 55.3 प्रतिशत और 2011 में 21.9% आबादी बहुआयामी गरीबी (Multidimensional poverty) से नीचे रहती थी। और अभी जनवरी 2024 में, नीति आयोग ने एक रिपोर्ट में कहा कि पिछले 9 सालों में 2022-23 तक 24.82 करोड़ लोग Multidimensional poverty से बाहर निकले हैं। यानी इस दावे की मानें, तो 2013-14 में भारत में जो Multidimensional poverty रेट 29.17% था, वो 2022-23 में घटकर 11.28% हो गया।
भारत में गरीबी कम हुई है?
Multidimensional poverty को मापने के 3 आधार हैं -हेल्थ, एजुकेशन और लिविंग स्टैण्डर्ड। भारत में 2011 के बाद से कोई गरीबी सर्वेक्षण नहीं किया है। 2014 के बाद से कोई उपभोग व्यय सर्वेक्षण नहीं हुआ है। मतलब, इनकम और गरीबी पर कोई अपडेटेड डेटा उपलब्ध नहीं है, जो गरीबी के स्तर को मापने का आधार है। इसलिए, नीति आयोग का यह अनुमान केवल 2019-21 के स्वास्थ्य सर्वेक्षण एनएचएफएस पर आधारित था। इस रिपोर्ट का 70% डाटा Covid 19 महामारी से पहले का लिया गया है, और 30% डाटा 2021 का यूज़ किया गया था। और हैरानी की बात है कि इस रिपोर्ट में 2020 के डाटा का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। अब इस रिपोर्ट के दावों को सच मानना चाहिए या नहीं, इस पर आप स्वयं विचार करें!
एक और बात, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के अनुसार देश की 67% आबादी मुफ्त राशन की पात्र है। ये निर्णय 2023 में देश की कुल जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए लिया गया था, जिसके अनुसार 923.9 मिलियन भारतीयों (67% भारतीयों) को मुफ्त राशन मिलना चाहिए। लेकिन डाटा के अपडेट नहीं होने या दूसरी कई वजहों से आज भी देश के 119.4 मिलियन भारतीय इस लाभ से वंचित हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार 2004 से 2012 तक वास्तविक मजदूरी निरंतर बढ़ रही थी, लेकिन 2013 से 2017 के बीच मजदूरी लगभग स्थिर रही है। देश की 2014 में बेरोजगारी दर 5.44% थी, जो 2024 में कम होने की बजाय बढ़कर 6.57% हो चुकी है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की मानें, तो हमारे देश में कुल जितने बेरोजगार हैं, उनमें से 83% युवा हैं। सवाल ये है कि जब unemployment बढ़ रही है, वास्तविक मजदूरी (real wages) नहीं बढ़ी, तो गरीबी कैसे कम हो सकती है?
यही नहीं, Household Consumption Expenditure Survey 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में देश में 19 करोड़ कर्मचारी ऐसे थे जो 100 रुपए प्रति दिन कमा रहे थे, जो 2011 में सिर्फ 10 करोड़ थे। 14 करोड़ ऐसे हैं, जो 100 से 200 के बीच कमाते हैं, और 12 करोड़ श्रमिक ऐसे हैं, जो प्रतिदिन 200 रुपये से 300 रुपये के बीच कमाते हैं। इन लोगों को non-poor की केटेगरी में रखा गया है, लेकिन ऐसा तो है नहीं कि ये लोग सुरक्षित हैं।
भारत में बढ़ रही आय में असमानता
गरीबी से लड़ने वाली एजेंसियों के एक अंतरराष्ट्रीय संघ, ऑक्सफैम द्वारा प्रकाशित 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, आज, भारत में सबसे अमीर 10% लोग देश की 80% संपत्ति के मालिक हैं। और टॉप 1% लोगों के पास भारत की 58% संपत्ति है। देश की जीडीपी बढ़ी है, भारत 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2023 में भारत कुल 125 देशों में से 111 वें रैंक पर है। गौर करने की बात ये है कि 2015 के बाद से भूख के खिलाफ भारत की जो रफ़्तार थी, वो लगभग रुकी हुई है। इस इंडेक्स में भारत का स्कोर 28.7 है, जो भुखमरी के गंभीर स्तर को दर्शाता है।
The India Forum में प्रकाशित आर्टिकल के अनुसार भारत की प्रति व्यक्ति सालाना आय 1991-92 में लगभग $300 थी, जो साल 2022-23 में बढ़कर 2,400 डॉलर पहुँच गई, लेकिन ग्लोबल एवरेज प्रति व्यक्ति आय (per capita income) ($12,500) से अभी भी बहुत दूर है।
Sustainable Development Goals & Poverty
ग्लोबल लेवल पर 17 Sustainable Development Goals (SDGs) तय किये गए हैं, और गरीबी को खत्म करना इसका पहला लक्ष्य है। लेकिन विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की 7 प्रतिशत आबादी यानी 57.4 करोड़ लोग 2030 तक चरम गरीबी के गर्त में धंसे होंगे। लगभग 8 करोड़ से ज्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा पाएंगे। यही नहीं, UN का मानना है कि दुनिया भर में 2 अरब लोगों को आज भी साफ़ पीने का पानी नहीं मिलता।
भले ही, कागज़ पर, भारत के पास जश्न मनाने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन जमीनी स्तर पर गरीबी को मिटाने के लिए सबसे पहले इसे स्वीकार करना होगा। पॉलिटिशंस को समझना होगा कि जनता से सच और रियल फैक्ट्स छिपा कर वोट बैंक तो इकठ्ठा हो जायेगा, पर इसकी कीमत देश को चुकानी पड़ेगी।
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