Today’s Top Story: आज के समय में जब प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग लगातार बढ़ रहे हैं, और हद से ज्यादा गर्मी (severe heatwave alert) पड़ रही है, खासकर दिल्ली (delhi heatwave 2025) से लेकर पूरे नार्थ इंडिया में! ऐसे में घरों को ठंडा रखना एक बड़ा चैलेंज बन गया है, जिसमें अनानास (Pineapple peel) आपकी मदद कर सकता है। इस दौरान एक नई और जिज्ञासा जगाने वाली खोज सामने आई है — अनानास के छिलके से छत बनाना। लेकिन क्या यह सिर्फ एक वायरल कंटेंट है, या फिर सच में आने वाले टाइम में यह घर की छतें बनाने का एक अच्छा जरिया बन सकता है?
अनानास का छिलका आम तौर पर बेकार ही माना जाता है। हर साल लाखों टन अनानास वेस्ट फेंक दिया जाता है, बिना उसका कोई उपयोग किए। लेकिन हाल की रिसर्च यह सुझाव देती हैं कि अनानास के छिलके में fiber, cellulose और heat-resistant गुण होते हैं, जिससे इसका उपयोग छतों के लिए किया जा सकता है। कृषि वेस्ट को प्रोडक्टिव बनाने के लिए फिलीपींस, थाईलैंड और भारत में कुछ शोधकर्ताओं ने अनानास के छिलके और पत्तों का उपयोग bio-composite roofing material बनाने के लिए किया है। यह तकनीक खासतौर पर विकासशील देशों में किफायती और पर्यावरण-अनुकूल हाउसिंग सॉल्यूशन्स हो सकती है। अनानास के छिलके से बनी छत अब केवल एक कल्पना नहीं बल्कि fireproof roofing material और natural insulation for roofs के रूप में उभर रही है। Pineapple peel roofing एक biodegradable building material है जो tropical climate roofing के लिए ideal माना जा रहा है।
यह टेक्नोलॉजी आई कहां से?
इस टेक्नोलॉजी की शुरुआत मलेशिया के Universiti Malaysia Sarawak (UNIMAS) में की गई, जहाँ इंजीनियरिंग संकाय के अंतर्गत एक रिसर्च प्रोजेक्ट के रूप में इसे डेवलप किया था। इस प्रोजेक्ट के तहत यह प्लान बनाया गया था कि जो भी natural waste material होता है, जैसे अनानास के छिलके (pineapple peels), इनका इस्तेमाल करके cost-effective building material बनाया जाये।
इसके लिए अनानास के छिलकों को पहले सुखाया गया, फिर उनमें से रेशा (fiber) निकाला गया और उसे प्राकृतिक रेजिन (eco-resin) के साथ मिलाकर कम्प्रेस किया गया, जिससे मजबूत, टिकाऊ शीट्स तैयार हुईं। इन शीट्स को आगे चलकर छतों के निर्माण में इस्तेमाल किया गया। इसे “Fiber-Reinforced Bio-Composite Sheets” कहा जाता है। इसकी सफलता के बाद इसे ग्रीन आर्किटेक्चर और low-cost housing प्रोजेक्ट्स में अपनाया जाने लगा। इसलिए अनानास सिर्फ खाने के नहीं, बल्कि एक ऐसा संसाधन है जिसे सही तकनीक से निर्माण कार्यों में उपयोग किया जा सकता है।
Pineapple Peel Handle temperature of 1,000 degrees Celsius?
बहुत से लोगों का यह सवाल है कि Can pineapple skin withstand heat? इसका जवाब रिसर्च में छिपा है और नतीजे बेहद रोचक हैं। स्टडी में यह पाया गया कि अनानास का छिलका 1,000 डिग्री सेल्सियस तक की उच्च तापमान (high temperature conditions) स्थितियों को भी सहन कर सकता है, और सबसे खास बात यह रही कि इतनी तीव्र गर्मी के बावजूद छिलका जला नहीं, जो कि इसे फायर-रेजिस्टेंट (Is pineapple peel fire resistant?) बनाता है।
इसके पीछे मुख्य कारण अनानास छिलके की संरचना (structure of the pineapple peel) है। इसमें मौज़ूद cellulose और lignin दो ऐसे जैविक घटक हैं, जिनमें आमतौर पर आग नहीं लगती। सेलुलोज heat tolerance को कंट्रोल करता है जबकि लिग्निन एक नेचुरल ‘बाइंडर’ की तरह काम करता है, जिसकी वजह से अगर इसमें आग लग भी जाती है, तो काफी लम्बे टाइम तक यह डैमेज नहीं होगा। इसके अलावा छिलके में नमी की मात्रा भी एक ऐसा कारक है, जो जलने से बचाव करती है। यही वजह है कि वैज्ञानिक पूछते हैं — Why can’t pineapple skin burn? तो उत्तर में यही मिलता है कि इसकी रेशेदार और नमी से भरी संरचना उसे जलने से बचाती है।
इस संदर्भ में जब सवाल उठता है कि Is pineapple peel fire resistant?, तो उत्तर है हाँ—कम से कम सीमित स्केल पर हुए प्रयोगों में यह गुण सिद्ध हुआ है। हालांकि इसे पूर्ण रूप से अग्निरोधक (fireproof) कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि यह पारंपरिक लकड़ी या प्लास्टिक आधारित सामग्री की तुलना में अधिक सुरक्षित है।
अनानास की खासियतें, जो इसे छत बनाने लायक बनाती हैं?
अनानास का छिलका केवल एक agricultural waste नहीं है, बल्कि इसके अंदर कुछ भौतिक और रासायनिक गुण होते हैं, जो इसे टिकाऊ और मजबूत बनाते हैं। कई स्टडीज और लैब टेस्टिंग हैं, जिनसे साबित होता है कि इससे एक मजबूत छत बन सकती है।
उच्च फाइबर: अनानास के छिलके में मुख्य रूप से cellulose (सेलुलोज) और lignin (लिग्निन) पाए जाते हैं। सेलुलोज प्राकृतिक पॉलीमर होता है, जो फाइबर को मजबूती और लचीलापन देता है, जबकि लिग्निन इसे हार्ड बनाता है। यही दोनों तत्व मिलकर छिलके को टिकाऊ शीट्स में बदलने में मदद करते हैं।
Water resistance: गर्मी ही नहीं, बल्कि यह बरसात को भी झेल सकता है। अनानास के छिलके की सतह को जब eco-resin या plant-based coating से ट्रीट किया जाता है, तब वह जलरोधक (water-repellent) बन जाती है। यह प्रक्रिया इसे मानसून जैसे मौसम में भी उपयोगी बनाती है।
हल्का लेकिन मजबूत: पारंपरिक छत सामग्री जैसे सीमेंट या टिन की तुलना में यह बायो-कॉम्पोजिट शीट्स बहुत हल्की होती हैं, जिससे निर्माण में आसानी होती है। लेकिन इसका tensile strength (तन्यता) बहुत ज्यादा होती है, जो इसे स्ट्रक्चरल durability भी देती हैं।
बायोडिग्रेडेबल प्रकृति: यह पूरी तरह से नेचुरल तरीके से बनी होती है, इसलिए पर्यावरण को भी नुक्सान नहीं होता। इसके परिणामस्वरूप यह कार्बन फुटप्रिंट को घटाती है। इन सभी गुणों के कारण अनानास का छिलका छत निर्माण के लिए न केवल उपयुक्त है, बल्कि भविष्य में पर्यावरण-अनुकूल भवन निर्माण का अहम हिस्सा भी बन सकता है।
कैसे बनती है अनानास के छिलकों की छत
इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआत अनानास के छिलकों को इकट्ठा करने से होती है, जिन्हें जूस फैक्ट्रियों या फल प्रोसेसिंग यूनिट्स से लिया जाता है। यह वो वेस्ट होता है, जिसे आमतौर पर फेंक दिया जाता है, लेकिन यहां इसे दोबारा यूज़ करने लायक बनाया जाता है। इन छिलकों को सबसे पहले अच्छी तरह से साफ़ किया जाता है, ताकि मिट्टी, केमिकल्स या किसी भी प्रकार के हानिकारक जीवाणु हटाए जा सकें। सफाई के बाद इन्हें धूप में या फिर खास हॉट-एयर ओवन में सुखाया जाता है, ताकि इनका नमी स्तर कम हो और फंगल इन्फेक्शन का खतरा न रहे।
इसके बाद आता है सबसे तकनीकी चरण—फाइबर निष्कर्षण (fibre extraction)। सूखे हुए छिलकों को एक खास मशीन में डाला जाता है, जो उनमें से प्राकृतिक फाइबर निकालती है। यही फाइबर आगे चलकर मजबूत और टिकाऊ शीट्स में बदले जाते हैं। निकाले गए इन फाइबरों को फिर एक बाइंडिंग एजेंट के साथ मिलाया जाता है, जैसे कि स्टार्च बेस्ड गोंद या इको-रेज़िन। इस मिश्रण को हाई प्रेशर मशीन के जरिए दबाकर चादर जैसी फॉर्म में ढाला जाता है।
अंत में इन शीट्स पर एक ख़ास किस्म की कोटिंग की जाती है, जो मौसम के प्रभाव, पानी और कीड़ों से सुरक्षा देती है। इस कोटिंग के लिए सामान्यतः प्लांट-बेस्ड या बायोडिग्रेडेबल मटेरियल का प्रयोग होता है। पूरी प्रक्रिया का मकसद यही है कि ट्रेडिशनल छत की तुलना में सस्ती, टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प तैयार किया जा सके जो आने वाले समय में बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो सके।
यह देश बना रहे Pineapple Peel Roofing
अनानास के छिलके से बनी यह पर्यावरण-अनुकूल रूफिंग तकनीक अब सिर्फ एक प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रही, बल्कि दुनिया के कई देशों में इसके सफल प्रयोग देखे जा चुके हैं। सबसे पहले अगर मलेशिया की बात करें, तो Kuching University ने इस टेक्नोलॉजी को व्यावहारिक बनाने के लिए कई पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू किए। इन प्रोजेक्ट्स में खासतौर पर ग्रामीण और निम्न-आय वर्ग के परिवारों के लिए इन शीट्स का उपयोग किया गया, जिससे न केवल टिकाऊ छतें बनीं, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला।
फिलिपींस (Philippines eco-friendly roofing technology) में भी यह तकनीक तेजी से अपनाई जा रही है। खासकर उन दूरदराज़ के गांवों में जहां पारंपरिक निर्माण सामग्री की पहुंच सीमित है या बहुत महंगी पड़ती है। वहाँ अनानास का वेस्ट आसानी से उपलब्ध होता है और इसे स्थानीय स्तर पर ही शीट्स में बदला जा सकता है, जिससे ट्रांसपोर्ट की कॉस्ट भी कम होती है।
कोस्टा रिका, जो दुनिया के प्रमुख अनानास उत्पादक देशों में से एक है, वहाँ भी यह सोच तेजी से लोकप्रिय हो रही है। वहाँ के किसान और सहकारी संस्थाएँ इस बायो-वेस्ट को इनके लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे कृषि वेस्ट की समस्या का हल भी निकल रहा है और पर्यावरणीय प्रदूषण में भी कमी आ रही है।
अंत में अगर अफ्रीका की बात करें, तो वहाँ कई NGOs इस इनोवेशन को प्रमोट कर रहे हैं, खासकर जलवायु परिवर्तन प्रभावित क्षेत्रों में। ये NGOs न केवल तकनीकी सहायता दे रहे हैं, बल्कि ट्रेनिंग के जरिए लोकल कम्युनिटीज को इस तकनीक से जोड़ भी रहे हैं। कई देश इस तकनीक पर काम कर रहे हैं और आने वाले समय में यह सस्टेनेबल कंस्ट्रक्शन का अहम हिस्सा बन सकती है!
Pineapple Peel Roofing: क्या भारत संभव है?
भारत में अनानास का उत्पादन मुख्य रूप से पूर्वोत्तर राज्यों जैसे त्रिपुरा, असम और मेघालय में होता है। ये राज्य जलवायु और भौगोलिक दृष्टि से अनानास की खेती के लिए सही माने जाते हैं और यहां हर साल हजारों टन छिलका वेस्ट के रूप में निकलता है। अब अगर इस वेस्ट को नष्ट करने के बजाय इसे दोबारा इस्तेमाल कर छत बनाने की शीट्स में बदला जाए, तो यह न केवल पर्यावरण की दृष्टि से फायदेमंद होगा, बल्कि ग्रामीण विकास और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए भी एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।
भारत में पहले से मौजूद योजनाएं जैसे Pradhan Mantri Awas Yojana (PMAY), जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखती हैं, इस टेक्नोलॉजी को अपनाकर लागत घटा सकती हैं और साथ ही सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा दे सकती हैं। इसके अतिरिक्त, नॉर्थ-ईस्ट रीजन में जहां अक्सर कंस्ट्रक्शन मटेरियल की सप्लाई एक चुनौती होती है, वहीं अगर स्थानीय स्रोतों से निर्माण सामग्री बनाई जाए, तो यह पूरी प्रक्रिया ज्यादा आसान हो जाती है। लोकल युवाओं को ट्रेनिंग देकर इन बायो-कॉम्पोज़िट शीट्स का निर्माण भी शुरू किया जा सकता है, जिससे रोजगार भी बढ़ेगा और वेस्ट मैनेजमेंट का एक नया मॉडल खड़ा होगा।
चुनौतियाँ और सीमाएँ: Pineapple Peel Roofing
हालांकि यह तकनीक सुनने में जितनी आकर्षक लगती है, उसे जमीनी स्तर पर लागू करना उतना ही चुनौतीपूर्ण है। सबसे पहली और बड़ी चुनौती है—इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन। फिलहाल भारत में ऐसे कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं हैं, जहाँ अनानास के छिलकों को प्रोसेस कर शीट्स में बदला जा सके। रिसर्च और छोटे स्तर पर प्रयोग तो हुए हैं, लेकिन व्यापक निर्माण के लिए आवश्यक मशीनरी, स्किल्स और इन्वेस्टमेंट की कमी है।
इसके अलावा, यह तकनीक लॉन्ग टर्म में कितने साल मजबूत (How strong is pineapple fiber?) रहेगी, इसका भी कोई वेरिफ़िएड डाटा नहीं है। यानी, अगर कोई अपने घर की छत अनानास से बना भी ले, तो वो छत कितने सालों तक मौसम, धूप, बारिश या दीमक के प्रभाव को झेल पाएगी, इस पर और ज्यादा रिसर्च की जरूरत है। साथ ही, आम जनता या construction कंपनियाँ अभी इसपर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं दिखतीं, क्योंकि यह पारंपरिक सीमेंट या टिन से बिल्कुल अलग है।
इसके अलावा, मौसम और कीटों से सुरक्षा भी एक चिंता का विषय है। हालांकि सतह पर कोटिंग की जाती है, लेकिन कोई गारण्टी नहीं है कि छत ख़राब नहीं होगी या दीमक नहीं लगेगी। इन सभी सीमाओं के बावजूद, अगर इन चुनौतियों को तकनीकी और नीति समर्थन के माध्यम से हल किया जाए, तो यह तकनीक भारत में ग्रीन कंस्ट्रक्शन का एक अहम हिस्सा बन सकती है।
जब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह पूछा जाता है कि What fruit is fire proof? तो अनानास ऐसा दुर्लभ फल माना जा सकता है, जिसका बाहरी छिलका आग को सहने में काबिलेतारीफ है। यदि इस क्षेत्र में और गहन शोध किए जाएं, तो संभव है कि भविष्य में इसे अग्नि-सुरक्षित भवन निर्माण के लिए Pineapple peel roofing एक अच्छी ऑप्शन होगी। यदि सही तरीके से इसे लागू किया जाए, तो अनानास के छिलके से बनी छतें केवल एक नवाचार नहीं बल्कि ग्रीन हाउसिंग सेक्टर में क्रांति साबित हो सकती हैं। यह सिर्फ विकल्प नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यकता बन सकता है। इसमें cellulose और lignin जैसे तत्व इसे heat resistant roof material और thermal insulation panels की श्रेणी में लाते हैं। यह eco-friendly construction और sustainable roofing technology की दिशा में एक बड़ा कदम है, खासकर जब इसे renewable roofing sheets और affordable housing roofing solutions के रूप में इस्तेमाल किया जाए। Pineapple fiber strength के चलते यह bio-composite roofing solution न केवल green construction innovation है बल्कि climate smart materials का भी बेहतरीन उदाहरण है। यह waste to wealth roofing innovation pineapple waste reuse को बढ़ावा देता है, जो कि आज के पर्यावरणीय दौर में अत्यंत आवश्यक है।
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