Life in Indian Slums: कभी सोचा है, उन जगहों पर जिंदगी कैसी होती है, जहाँ हर सुबह एक नई चुनौती लेकर आती है? जहाँ लोग अपने छोटे-छोटे, अस्थायी घरों में रहते हैं, बुनियादी सुविधाओं के बिना, लेकिन फिर भी हर दिन उम्मीद के साथ जीते हैं। यह कहानी है भारत के Slums (मलिन बस्तियों) की—जहाँ गरीबी और संघर्ष के बीच लाखों लोग अपने सपनों की तलाश में जुटे रहते हैं। आइए, जानते हैं इन स्लम्स की असली तस्वीर।
1. What is a slum?
स्लम्स वो जगहें हैं जहाँ लोग अवैध, अस्थायी और घटिया निर्माण वाले मकानों में रहते हैं। ये बस्तियाँ ज़्यादातर ऐसे इलाकों में होती हैं, जहाँ बिजली, पानी, और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाएं या तो नहीं होतीं, या बहुत सीमित होती हैं। Pronab Sen Committee के अनुसार, स्लम्स का मतलब होता है एक ऐसी बस्ती जिसमें कम से कम 20 घर हों, जो अस्थायी या अवैध मकानों से बने हों और जहाँ स्वच्छता की भारी कमी हो।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की शहरी आबादी का करीब 17.4% हिस्सा स्लम्स में रहता है, जो लगभग 65.5 मिलियन लोग हैं। और अगर हम इसे ग्लोबल पर्सपेक्टिव से देखें, तो 2001 में करीब 924 मिलियन लोग स्लम्स में रह रहे थे, जो उस समय की पूरी शहरी आबादी का लगभग 32% था।
2. शहरीकरण की रफ्तार और मलिन बस्तियों का विकास
भारत में शहरीकरण की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। World Bank की रिपोर्ट के अनुसार, 2036 तक भारत की 40% आबादी शहरी इलाकों में रहेगी, जो 2011 में 31% थी। भारत की शहरी अर्थव्यवस्था देश के GDP में लगभग 70% का योगदान करती है(
शहरीकरण की इस तेज़ी के साथ, लोग गाँवों से शहरों की ओर पलायन करते हैं, जहाँ वे रोजगार की तलाश में आते हैं, लेकिन आवास की भारी कमी के कारण स्लम्स में रहने को मजबूर होते हैं। Population density का भी इसमें बड़ा हाथ होता है। Population density का मतलब होता है कि एक specific area में कितने लोग रहते हैं। जैसे, अगर 10 km² के इलाके में 10,000 लोग रहते हैं, तो वहाँ की density होगी 1,000 लोग प्रति km²। मुंबई जैसे शहरों में यह density बहुत ज्यादा होती है, खासकर धारावी जैसे स्लम्स में, जहाँ छोटी सी जगह पर लाखों लोग रहते हैं।
3. major slums in India
भारत के बड़े शहरों में कई प्रमुख स्लम्स हैं, जिनमें से कुछ सबसे चर्चित हैं:
- धारावी, मुंबई: एशिया का सबसे बड़ा स्लम, जहाँ 1 मिलियन लोग मात्र 2.1 km² के क्षेत्र में रहते हैं। इतनी घनी आबादी के बावजूद, धारावी में लोगों ने एक vibrant economy खड़ी की है, जहाँ छोटे-छोटे उद्योग फल-फूल रहे हैं।
- भलस्वा, दिल्ली: यहाँ लोग बेहद गंदगी और स्वास्थ्य समस्याओं के बीच रह रहे हैं, और इस स्लम का एक हिस्सा तो कचरे के ढेर के पास ही बसा हुआ है।
- नोचिकुप्पम, चेन्नई: यह स्लम समुद्र तट के पास बसा है, जहाँ रहने की स्थिति बेहद खतरनाक है, खासकर मानसून के दौरान।
4. पलायन और मलिन बस्तियों का गहरा संबंध
भारत में स्लम्स की संख्या में इज़ाफा होने का सबसे बड़ा कारण है ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन। लोग गाँवों से रोजगार और बेहतर जिंदगी की तलाश में बड़े शहरों में आते हैं, लेकिन इन शहरों में उनके लिए रहने की पर्याप्त सुविधाएं नहीं होतीं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के लगभग 7935 शहरों और कस्बों में से 70% लोग केवल 468 Class I Urban Agglomerations में रहते हैं।
मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में यह पलायन और भी ज्यादा दिखता है। 2001 में, मुंबई और दिल्ली की जनसंख्या का लगभग 45% हिस्सा प्रवासियों का था।
5. Slums की प्रमुख समस्याएं
स्लम्स में रहने वाले लोग निम्नलिखित प्रमुख समस्याओं का सामना करते हैं:
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: स्लम्स में साफ पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी होती है। डायरिया, टायफॉइड और डेंगू जैसी बीमारियाँ यहाँ आम हैं।
- शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी: स्लम्स में रहने वाले बच्चों को शिक्षा की उचित सुविधाएं नहीं मिल पातीं, जिससे उनके भविष्य के अवसर सीमित हो जाते हैं।
- अवैध और असुरक्षित मकान: अधिकतर स्लम्स में लोग बिना किसी कानूनी मान्यता के रहते हैं, जिससे वे किसी भी वक्त विस्थापित हो सकते हैं।
6. सरकारी प्रयास और योजनाएं
भारत सरकार ने Slums की स्थिति सुधारने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे:
- प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): इस योजना का लक्ष्य है कि 2030 तक सभी के पास एक पक्का घर हो।
- जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM): यह योजना स्लम्स को पुनर्विकसित करने और वहां रहने वाले लोगों को बेहतर आवास प्रदान करने के लिए बनाई गई थी।
7. विश्व स्तर पर स्लम्स की स्थिति
भारत की तरह ही, स्लम्स की समस्या पूरे विश्व में फैली हुई है। बांग्लादेश, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों में भी स्लम्स की स्थिति बेहद खराब है। नैरोबी, केन्या का किबेरा स्लम और ब्राजील के रियो डी जेनेरो के फेवलास भी स्लम्स की गंभीरता को दर्शाते हैं।
8. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
Slums का केवल लोगों की जीवनशैली पर ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। Slums में रहने वाले लोग निम्न आय वर्ग से आते हैं, और उनकी मासिक आय 10,000 से 12,000 रुपये के बीच होती है। इतने कम संसाधनों के साथ ये लोग स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में संघर्ष करते हैं।
9. स्लम्स का भविष्य और समाधान
Slums की समस्या को हल करना आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। इसके लिए केवल सरकारी योजनाएं ही नहीं, बल्कि निजी सेक्टर और सामाजिक संगठनों की भी भागीदारी जरूरी है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स और सामुदायिक सशक्तिकरण के माध्यम से स्लम्स की स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
आखिरकार, Slums सिर्फ अवैध बस्तियाँ नहीं हैं, बल्कि लाखों लोगों की उम्मीदों और सपनों का ठिकाना हैं।
संक्षेप में, Slums का मुद्दा जितना गंभीर है, उतना ही इसका समाधान भी सामूहिक प्रयासों में छिपा है। सरकार, सामाजिक संगठनों और नागरिकों के सामूहिक प्रयासों से हम स्लम्स की स्थिति को सुधार सकते हैं और लाखों लोगों को बेहतर जीवन दे सकते हैं।
Source:
SDG News In Hindi
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