Kashmir Autonomy Resolution: क्या है, क्यों है, और क्यों हो रहा है इसका विरोध?

Kashmir Autonomy Resolution: जम्मू और कश्मीर के क्षेत्रीय विधानसभा (regional assembly) द्वारा हाल ही में पास किए गए ऑटोनॉमी रेज़ोल्यूशन (autonomy resolution) ने एक बार फिर राज्य में विशेष दर्जे की बहाली को लेकर चर्चा शुरू कर दी है। इस प्रस्ताव में केंद्र सरकार से 2019 में रद्द किए गए अनुच्छेद 370 और 35A को बहाल करने की मांग की गई है, जिससे जम्मू-कश्मीर को आंशिक स्वायत्तता (partial autonomy) प्राप्त थी।

क्या है कश्मीर ऑटोनॉमी रेज़ोल्यूशन?

कश्मीर ऑटोनॉमी रेज़ोल्यूशन एक आधिकारिक प्रस्ताव है, जो जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय विधानसभा में पास हुआ है। इस रेज़ोल्यूशन में कहा गया है कि केंद्र सरकार को राज्य के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करनी चाहिए और अनुच्छेद 370 तथा 35A को पुनः बहाल करने पर विचार करना चाहिए। अनुच्छेद 370, जो कि 2019 तक लागू था, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता था और उसे संविधान के कुछ प्रावधानों से छूट देता था। इसी के साथ अनुच्छेद 35A कश्मीरियों के कुछ अधिकारों और विशेषाधिकारों को सुरक्षित करता था।

अनुच्छेद 370 और 35A 

5 अगस्त 2019 को, केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया। सरकार का कहना था कि इस कदम से जम्मू-कश्मीर में विकास की गति बढ़ेगी और क्षेत्र में आतंकवाद को समाप्त करने में मदद मिलेगी। हालाँकि, इस निर्णय का कई स्थानीय नेताओं और पार्टियों ने विरोध किया, जो मानते हैं कि विशेष दर्जा कश्मीर की पहचान और अधिकारों की सुरक्षा का प्रतीक था।

किसे है आपत्ति और क्यों?

जहां कई क्षेत्रीय पार्टियों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है, वहीं बीजेपी (BJP) और कुछ अन्य दलों ने इसका कड़ा विरोध किया है। बीजेपी का कहना है कि अनुच्छेद 370 को हटाना एक राष्ट्रवादी कदम था और यह कश्मीर को भारतीय संविधान (Indian Constitution) के साथ पूरी तरह से जोड़ता है। पार्टी का मानना है कि विशेष दर्जा देने से क्षेत्र में अलगाववाद को बढ़ावा मिलेगा और यह भारत की अखंडता (integrity) के लिए खतरनाक हो सकता है।

बीजेपी के नेताओं का कहना है कि रेज़ोल्यूशन के माध्यम से कश्मीर में स्वायत्तता का मुद्दा उठाना देश की एकता के खिलाफ है। उनका तर्क है कि यह निर्णय जम्मू-कश्मीर में निवेश और विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक था, और इसका पुनः बहाल किया जाना पीछे की ओर जाने जैसा होगा।

अन्य दलों का समर्थन क्यों?

इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाली पार्टियाँ और स्थानीय नेता मानते हैं कि अनुच्छेद 370 और 35A जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान की रक्षा करते थे। वे कहते हैं कि केंद्र सरकार का 2019 का निर्णय एकतरफा था और इसके परिणामस्वरूप लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँची। उनका मानना है कि इस प्रस्ताव के माध्यम से स्थानीय लोगों की इच्छाओं को फिर से केंद्र के सामने रखा जा सकता है।

यह देखना अब महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय लेती है। चूंकि यह विषय संवैधानिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत ही संवेदनशील है, इसलिए केंद्र सरकार के लिए यह एक बड़ा निर्णय साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस विषय पर एक खुला संवाद ही जम्मू-कश्मीर के भविष्य को सुरक्षित और स्थिर रख सकता है।

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