अगर आप मांस खाते हैं, तो ये जानना ज़रूरी है | The Hidden Truth of Meat, Eggs & Dairy Farming in India

Hidden Truth of Meat: ये एंटी-मांस आर्टिकल नहीं है! हम सबने मांस के खिलाफ दलीलें सुनी हैं, लेकिन फिर भी दुनिया की ज़्यादातर आबादी मांस खाती है — क्यों? क्योंकि ये स्वादिष्ट है, आसानी से उपलब्ध है और हमारी संस्कृति में गहराई से जुड़ा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ, हम जानवरों से प्यार भी करते हैं — उनके अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, पालतू जानवर पालते हैं और क्रूरता के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं। तो सवाल ये है कि जब हम जानवरों से प्यार करते हैं, तो फिर हम उन्हें खाने से पहले उनके साथ इतना खराब सलूक क्यों करते हैं? भारत में स्थिति थोड़ी अलग है। यहाँ दुनिया के मुकाबले मांस की खपत कम है — लगभग 70% भारतीय कभी न कभी मांस खाते हैं, लेकिन consumption की मात्रा अभी भी विकसित देशों से कम है। इसके बावजूद, industrial animal farming भारत में भी तेज़ी से बढ़ रहा है, खासकर poultry और dairy सेक्टर में।

Hidden Truth of Meat

दुनिया में ज़्यादातर farm animals बेहद भयानक हालात में रहते हैं। उन्हें टार्चर किया जाता है, ताकि मांस और अंडा थोड़ा सस्ता हो जाता है। कई किसानों का यह कहना है कि वो ऐसा नहीं करना चाहते, और इन जानवरों को भी सही हालत में रखना चाहते हैं, लेकिन बाजार की मांग और कम दामों की होड़ उन्हें मजबूर कर देती है। भारत में भी यही ट्रेंड दिखाई दे रहा है। Reports के अनुसार, भारत में 80% से ज्यादा अंडा और पोल्ट्री प्रोडक्शन battery cage systems में होता है। Battery Cage Systems एक ऐसा poultry farming तरीका है जिसमें मुर्गियों को बहुत ही छोटी-छोटी wire cages में बंद करके रखा जाता है, जहाँ उनके पास ठीक से खड़े होने या पंख फैलाने तक की जगह नहीं होती। ये cages एक के ऊपर एक और साइड-बाय-साइड arrange किए जाते हैं — जैसे batteries की cells, इसलिए इसे “battery cage” कहा जाता है। वहीं dairy industry में भी गायों और भैंसों को अक्सर overcrowded, unhygienic और concrete flooring वाले environments में रखा जाता है। हम farming systems को तीन कैटेगरी में बांट सकते हैं: Decent (थोड़ी अच्छी स्थिति), Prison (कैद जैसी स्थिति) और Torture Camp (बिल्कुल अमानवीय स्थिति)!

हर साल मारे जाते हैं 7 अरब चूजे

अंडा उत्पादन में 90% hens बहुत ही तंग cages में रखी जाती हैं — न चल सकती हैं, न कुदरती व्यवहार दिखा सकती हैं। कई farms में beak काट दी जाती है, ताकि वो एक-दूसरे को चोट न पहुँचाएं। यूरोप और अमेरिका में सुधार हो रहे हैं, लेकिन फिर भी 50% से ज़्यादा मुर्गियाँ cages में हैं। जबकि एक अच्छा विकल्प, barn system, प्रति अंडा सिर्फ 2 से 7 सेंट महंगा पड़ता है। भारत में अभी तक male chick culling को लेकर कोई मजबूत regulation नहीं है। Chicks को ज्यादातर live shredding या suffocation methods से मारा जाता है, जो ethical perspective से बेहद क्रूर है।

Live Shredding का मतलब है नवजात male chicks को जिंदा ही industrial grinders में डालकर मार देना — क्योंकि वो अंडे नहीं देते और इसलिए commercial egg production के लिए “बेकार” माने जाते हैं। हर साल लगभग 7 अरब male chicks को इसी तरीके से मारा जाता है। ये caged, barn और यहां तक कि organic egg production में भी होता है। कई बार chicks को gas से भी मारा जाता है, लेकिन live shredding सबसे सस्ता और तेज़ तरीका माना जाता है। भारत में भी ऐसा ही होता है, लेकिन इसकी transparency बेहद कम है और इसे regulate करने वाला कोई strict कानून अभी नहीं है। सीधे शब्दों में कहें तो — अगर आप अंडे खरीद रहे हैं, तो बहुत संभावना है कि उससे पहले एक baby chick को जिंदा पीस दिया गया हो।

Fast Growth का काला सच

आज के चिकन genetic तौर पर ऐसे बनाए गए हैं कि वो बहुत तेजी से मोटे हो जाते हैं, लेकिन उनका शरीर इस वजन को संभाल नहीं पाता। उन्हें चलने में दर्द होता है, ऑर्गन्स पर ज़बरदस्त प्रेशर होता है। अगर इनकी जगह स्लो ग्रोथ वाले healthier breeds लाए जाएं, तो per serving cost सिर्फ 9 cents बढ़ेगी। और बेहतर रहने की स्थिति देने से कीमत सिर्फ 13 cents बढ़ती है। भारत में broiler chicken industry सबसे तेजी से बढ़ने वाला meat sector है। यहाँ भी birds को cramped enclosures में पाला जाता है, जहां natural light, movement या fresh air लगभग नहीं होती। Antibiotics और hormonal feed का इस्तेमाल आम है, ताकि birds जल्दी grow करें।

Pig उतने ही social और smart होते हैं जितने कि कुत्ते, फिर भी 90% से ज़्यादा सूअर पिंजरों में, बिना straw के, concrete floors पर रहते हैं। उनकी पूंछ काटी जाती है, male pigs को castrate किया जाता है — वो भी बिना anesthesia के। Castrate का मतलब होता है किसी male animal के testicles (वृषण) को surgically या chemically हटाना, ताकि वो reproduce न कर सके या उसका behavior control किया जा सके। भारत में pig farming कम commercial है, लेकिन northeastern states और tribal communities में consumption और farming common है। हालांकि, जहां industrialization हुआ है, वहाँ conditions अक्सर western torture models को फॉलो करती हैं।

Beef cattle आमतौर पर दो-तिहाई जीवन outdoor pasture में बिताते हैं, लेकिन slaughter से पहले उन्हें feedlots में बंद कर दिया जाता है। Dairy cows की हालत और भी खराब होती है — concrete पर खड़े-खड़े उन्हें ulcer, दर्द और चोटें लगती हैं।भारत में गायों और भैंसों को पवित्र माना जाता है, लेकिन dairy farming के पीछे की सच्चाई उतनी divine नहीं है। “Gaushalas” में overcrowding, lack of vet care और calf separation आम बात है। Non-lactating या ‘unproductive’ गायों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। भारत में ethical dairy models उभर रहे हैं, लेकिन वो अभी भी niche market तक सीमित हैं।

Chicken Meat की कीमत 100% बढ़ जाएगी

अगर सभी animals को decent ज़िंदगी दी जाए, तो Beef और दूध 15% ज़्यादा महंगे हो जायेंगे! वहीँ Eggs और pork का रेट 50% ज़्यादा हो सकता है, जबकि Chicken meat की कीमत 100% बढ़ जाएगी। अमेरिका की बात करें तो वहां average व्यक्ति $88 हर महीने meat, egg और dairy पर खर्च करता है। अगर कीमत 50% बढ़ जाए तो monthly खर्च सिर्फ $43 और बढ़ेगा — जो कि 1987 के खर्च जितना है।

वहीँ अगर भारत की बात करें तो average household grocery खर्च लगभग ₹3000–₹6000 प्रति माह होता है जिसमें लगभग ₹500–₹1200 मांस, अंडा और दूध पर खर्च होता है। अगर इनकी कीमतों में 30–50% इजाफा हो जाए, तब भी ये बदलाव middle-class families के लिए संभव है — खासकर अगर वे food waste कम करें।

Local farm से खरीदें, अगर संभव हो

जब भी मांस खरीदें, हमेशा Labels पढ़ें। अगर पैकेज पर कुछ नहीं लिखा, तो मान लीजिए वो torture meat है। Free-range, approved”, और कुछ state-specific labels ethical खरीद के संकेतक हो सकते हैं। Mussels जैसे विकल्प बेहतर हैं — सस्ते, sustainable और बिना nervous system के। (भारत में समुद्री भोजन coastal क्षेत्रों में अधिक consumed होता है।)

मांस खाना गलत नहीं, लेकिन जानवरों की हालत सुधारना ज़रूरी है! आपको vegan बनने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन अगर आप मांस खाते हैं, तो कम से कम ये जानने की ज़रूरत है कि वो कैसे तैयार होता है। थोड़ी ज़्यादा कीमत देकर हम करोड़ों जानवरों की ज़िंदगी बेहतर बना सकते हैं। यह न सिर्फ उनके लिए फायदेमंद है, बल्कि जो लोग मांस खाते हैं, उनकी हेल्थ में भी कंट्रीब्यूट कर सकता है। कम खाइए, बेहतर खरीदिए, और बेवजह waste मत कीजिए। ये small steps भी big impact ला सकते हैं — खासकर भारत जैसे देश में जहां consumption habits बहुत तेज़ी से बदल रही हैं।

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