Health system in India: आज “स्वास्थ्य एक मानवाधिकार (human right) है”, लेकिन 1946 से पहले ऐसा नहीं था। इसे पहली बार एक human right साल 1946 में माना गया, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) ने इसे मानवाधिकार की श्रेणी में रखने की पहल की। इसके अनुसार तब से स्वास्थ्य का अधिकार मानव गरिमा का एक जरूरी हिस्सा बन गया और लोगों के इस अधिकार की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी बन गई। इस पहल के साथ सरकार का यह एक अनिवार्य (mandatory) काम बन गया कि चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति, नस्ल, लिंग, धर्म का हो, या उसकी आर्थिक या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो, उसके स्वास्थ्य के अधिकार को प्रोटेक्ट करना सरकार की जिम्मेदारी होगी।
Health system in India
साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) की थी, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये थे। आसान भाषा में कहें तो मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) एक ऐसा डॉक्यूमेंट है,जो मानव जाति के अधिकारों और स्वतंत्रता के बारे में बात करता है। इसे 10 दिसंबर, 1948 को Resolution 217 के अनुसार United Nations General Assembly द्वारा स्वीकार किया गया था। यूडीएचआर में 30 अनुच्छेद हैं, जो किसी व्यक्ति के “मूल अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता” के बारे में बात करते हैं। यह डॉक्यूमेंट हर नस्ल, धर्म और राष्ट्रीयता के लोगों पर समान रूप से लागू होती है।
असल में भारत UDHR (1948) के अनुच्छेद 25 का एक हस्ताक्षरकर्ता है, जो भोजन, कपड़े, आवास और हेल्थ केयर व अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं सहित, बिना किसी भेदभाव के, सभी लोगों को स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है।
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार (स्वास्थ्य)
जैसा कि आप जानते हैं कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। हमारे देश में स्वास्थ्य के अधिकार को डायरेक्ट फंडामेंटल राइट नहीं बनाया गया है, बल्कि यह “जीवन के अधिकार” का एक अभिन्न अंग है। हालांकि चावला के मामले में यह माना गया है कि अनुच्छेद 21 के तहत सुनिश्चित जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य और हेल्थ केयर का अधिकार भी शामिल है। विंसेंट बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि स्वस्थ शरीर ही सभी मानवीय गतिविधियों का आधार है।
भारत में हेल्थ केयर सेक्टर के हालत
सुधारों के बावजूद, भारत के हेल्थ केयर इंफ्रास्ट्रक्चर को इम्प्रूवमेंट की जरूरत है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। वैश्विक रियल एस्टेट सलाहकार नाइट फ्रैंक और अमेरिका स्थित बर्कडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 70,000 अस्पताल हैं, जिनमें से 63% प्राइवेट सेक्टर के हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत प्रति 1,000 लोगों पर 3 बिस्तर भी देना चाहेगा, तब भी इसे 24 लाख अतिरिक्त बिस्तरों की जरूरत है, क्योंकि अभी भारत में प्रति 1,000 लोगों पर सिर्फ 1.4 बिस्तर हैं।
भारत में प्रति 1,445 लोगों पर 1 डॉक्टर और प्रति 1,000 लोगों पर 1.7 नर्स हैं। उससे भी बड़ी बात, देश का 75% से ज्यादा हेल्थ इंफ्रास्ट्रर सिर्फ मेट्रो सिटी में है, जहाँ देश की कुल आबादी का सिर्फ 27% हिस्सा रहता है। यानी बाकी 73% भारतीय आबादी के पास बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं भी नहीं हैं।
Public health service पर भारत सरकार का बजट
इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि बहुत कम बजट हेल्थ केयर सेक्टर पर खर्च होता है। साल 2021-22 में भारत सरकार ने हेल्थ केयर के लिए जीडीपी का सिर्फ 2.1% बजट रखा था, जबकि जापान, कनाडा और फ्रांस अपने जीडीपी का लगभग 10% Public health service पर खर्च करते हैं। यहाँ तक कि हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश और पाकिस्तान भी अपने जीडीपी का 3% से ज्यादा Public health service पर खर्च करते हैं।
साल 2023-24 के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के लिए 86,175 करोड़ रुपये का बजट था, जो भले ही 2024-25 में बढ़कर 87,656 करोड़ रुपये हो गया, लेकिन यहाँ पर यह सिर्फ एक निरपेक्ष संख्या में वृद्धि जैसा है, क्योंकि अगर मुद्रास्फीति (महंगाई) को 5% पर मान कर चलें तो यह 3.17% कम बजट है। इस प्रकार, असल में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के लिए बजट में कमी आई है।
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना
(PMSSY) देश के वंचित क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान और clinical care के लिए समर्पित है। लेकिन इसके बजट में भी कमी आयी है। 2023-24 में इस पर 3,365 करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 2,400 करोड़ रुपये पर सिमट गया। मतलब 33% की गिरावट।
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन
(पीएम-एबीएचआईएम) को कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बाद 2021 में लॉन्च किया गया था। इस योजना का लक्ष्य 5 सालों में 64,000 करोड़ रुपये खर्च करना था। लेकिन पिछले साल इसमें 4,200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जबकि 2024-25 के लिए इसे 4,107 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
हेल्थ केयर का गरीबी पर असर
स्वास्थ्य सुविधाओं तक सीमित पहुँच, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, एक बड़ी चुनौती है। इसके अतिरिक्त, परिवहन संबंधी समस्याएँ और जेब से ज़्यादा खर्च कई लोगों को समय पर चिकित्सा सहायता लेने से रोकता है। कई योजनाएं शुरू की गयी हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर आयुष्मान भारत जैसी कई योजनाएं हैं, जिनका लोगों को लाभ नहीं मिल पा रहा। स्वास्थ्य बीमा कवरेज की अनुपस्थिति लाखों लोगों को स्वास्थ्य सेवा के वित्तीय बोझ के प्रति कमजोर बना देती है, जिससे उन्हें बुनियादी ज़रूरतों और उपचार के बीच चयन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 2030 की डेडलाइन से 7 साल पहले भारत हेल्थ केयर सेक्टर से जुड़े 50% इंडीकेटर्स में भी सुधार के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया है। इस रिसर्च में पाया गया कि आज भी 75 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय जिले बुनियादी सेवाओं तक पहुँच, गरीबी, बच्चों का बौनापन और कमज़ोरी, एनीमिया, बाल विवाह, साथी के साथ हिंसा, तंबाकू का उपयोग और आधुनिक गर्भनिरोधक उपयोग जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों से कोसों दूर हैं। दुर्भाग्य की बात है, आज भी भारत हेल्थ केयर को फंडामेंटल राइट नहीं बना पाया है।
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2 thoughts on “Health system in India: क्या इस सेक्टर को सुधारने से भारत में गरीबी कम हो जाएगी?”