Global AI Divide 2025: AI आज के समय में दुनिया भर में हर सेक्टर को बदल रहा है — एजुकेशन, बिजनेस, डिफेंस, हेल्थकेयर, और यहां तक कि मीडिया पर भी इसका असर पड़ा है। लेकिन एक अहम सवाल उठता है: क्या यह तकनीक सभी देशों को समान अवसर दे रही है या फिर अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई को और गहरा कर रही है?
अमेरिका और चीन जैसे देश दुनिया के top AI creators बन चुके हैं, वहीं भारत, अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देश सिर्फ एक डेटा प्रोवाइडर या यूँ कहें कि कस्टमर बन के रह चुके हैं। “Global AI Divide” का यह सच अब चर्चा का विषय बन चुका है, जहां AI inequality, AI ethics, और AI exploitation जैसे मुद्दे सामने आ रहे हैं। यह रिपोर्ट इस ग्लोबल असमानता की गहराई को समझाने का प्रयास है।
Global AI Divide 2025: TOP AI Powers In the World
Global AI Divide 2025: यह देश सबसे आगे
आज के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एक तरह का ‘नई सदी का हथियार’ बन चुका है। लेकिन यह हथियार कुछ ही देशों के पास है। अमेरिका इस दौड़ में सबसे आगे है। वहां की कंपनियां जैसे OpenAI (ChatGPT का निर्माता), Google DeepMind, Meta AI और Amazon AWS ने दुनिया के सबसे influential AI models बनाए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, अमेरिका में सरकार और प्राइवेट कंपनियों के बीच गहरा सहयोग है। उदाहरण के लिए, DARPA जैसे सरकारी संस्थान सालों से AI से जुड़ी रिसर्च को फंड कर रहे हैं। इसके अलावा Silicon Valley में मौजूद टेक कंपनियां रोज़ नए-नए experiments कर रही हैं।
चीन की AI रणनीति (China’s AI strategy) अलग है, लेकिन किसी से कम नहीं है। वहां AI का इस्तेमाल facial recognition, surveillance और content censorship जैसे मामलों में बड़े पैमाने पर हो रहा है। Alibaba, Baidu, और Tencent जैसी कंपनियों ने अपने खुद के भाषा मॉडल्स (LLMs) तैयार किए हैं। चीनी सरकार इन प्रयासों में खुलकर साथ देती है, जिससे चीन का AI तेजी से सरकारी एजेंसियों और आम जनता के बीच फैल रहा है। इस बात का आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि बीजिंग एयरपोर्ट (Beijing airport) पर सिर्फ 3 सेकंड में आपका face scan हो जाता है।
European Union (EU) भी इसमें पीछे नहीं है। इसकी AI strategy भले ही थोड़ी धीमी है, लेकिन European Union ethical AI regulation में सबसे आगे है। वहां का EU AI Act दुनिया का पहला comprehensive कानून है, जो high-risk AI applications (जैसे facial recognition या biometric data processing) को regulate करता है। उनका फोकस है – fairness, transparency और सबसे ख़ास user safety.
भारत AI के global power map में अभी बहुत पीछे है। हम AI users ज़रूर हैं — भारत दुनिया में ChatGPT और अन्य AI tools के सबसे बड़े consumer markets में से एक है। लेकिन बात जब AI development और original model creation की आती है, तो हम अभी भी शुरुआती दौर में हैं।
भारत सरकार ने National AI Mission और स्टार्टअप्स जैसे Krutrim, Saarthi.ai के जरिए कदम तो बढ़ाए हैं, लेकिन अभी तक कोई breakthrough AI product भारत से globally launch नहीं हुआ है। इसका कारण है research में इन्वेस्टमेंट की कमी, skilled talent का brain drain, और बुनियादी digital infrastructure की कमी। और यही कारण है कि आज हम सिर्फ AI के कस्टमर हैं, डेवलपर नहीं बन पाए।
डाटा भारत का, लेकिन मालिक कोई और
आज भारत- दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल यूज़र बेस में से एक है। हर दिन हम Google पर कुछ सर्च करते हैं, WhatsApp या Instagram पर बात करते हैं, YouTube पर वीडियो देखते हैं — और इन सभी एक्टिविटी से हमारा डेटा तैयार होता है। यह डेटा सिर्फ हमारा personal footprint नहीं है, बल्कि AI सिस्टम्स के लिए सोने की खान है।
लेकिन इस डेटा का फायदा आखिर किसे मिल रहा है? ज़्यादातर मामलों में यह जानकारी भारत में प्रोसेस नहीं होती, बल्कि अमेरिका या यूरोप में बड़े-बड़े AI servers पर जाती है। ChatGPT, Google Bard या Meta के AI सिस्टम्स, जिनका हम रोज़ इस्तेमाल करते हैं, वो हमारे डेटा से ही smart बनते हैं, लेकिन ownership उनका होता है।
ठीक है भारत ने भी BharatGPT, Krutrim जैसे इनिशिएटिव लिए, लेकिन यह काफी नहीं हैं। अभी भी ये अपने मॉडल्स को ट्रेन करने के लिए Microsoft Azure जैसे foreign cloud infrastructure पर निर्भर हैं। इसका मतलब यह है कि AI technology का कंट्रोल भारत में नहीं, बल्कि विदेशों में है। भले ही हम छोटे मोटे काम कर रहे हैं, लेकिन पूरा कंट्रोल किसी और के हाथ में है।
Digital Slavery In India 2025
सोचिए — अगर भारत में 75 करोड़ इंटरनेट यूज़र्स हैं और हर कोई रोज़ औसतन 2 घंटे ऑनलाइन है, तो कितना ज्यादा डेटा सिर्फ एक देश से बाहर जा रहा है। लेकिन उस डेटा से तैयार हुए AI मॉडल भारत के हिसाब से काम नहीं करते — न भाषा में, न संदर्भ में, और न संस्कृति में।
यह वही सिचुएशन है, जैसे ब्रिटिश राज में भारत से कच्चा माल जाता था और तैयार सामान विदेश से वापस आता था। फर्क बस इतना है कि अब ‘कच्चा माल’ हमारा डेटा है और ‘सामान’ है AI मॉडल। यही वजह है कि एक्सपर्ट इस सिचुएशन को “data colonization” और “digital slavery” कहने लगे हैं। अगर भारत को AI की दुनिया में एक सशक्त और स्वतंत्र भूमिका निभानी है, तो उसे सिर्फ डेटा सप्लायर नहीं बल्कि data owner and technology creator बनना होगा।
क्यों भारत AI Tools का क्रिएटर नहीं बन पाया?
AI का फायदा सभी देशों और लोगों को एक जैसा नहीं मिल रहा। विकसित देशों (Developed Nations) में AI का इस्तेमाल productivity बढ़ाने, healthcare diagnosis को तेज़ करने, और legal system को ऑटोमेट करने के लिए किया जा रहा है।
उदाहरण के लिए, अमेरिका में IBM Watson को cancer diagnosis में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे डॉक्टरों को बेहतर और जल्दी डिसिशन लेने में मदद मिलती है। यूरोप में legal tech platforms AI की मदद से contract analysis और case prediction जैसे काम कर रहे हैं।
लेकिन विकासशील देशों में इसका बिलकुल उलटा हो रहा है। जैसे भारत, नाइजीरिया, या बांग्लादेश में AI का उपयोग surveillance (निगरानी), misinformation फैलाने, और manual jobs को हटाने के लिए हो रहा है। भारत में कई सरकारी कैमरे facial recognition से लैस हो चुके हैं, लेकिन इनकी accuracy अक्सर सवालों के घेरे में होती है।
एक और बड़ी चुनौती है — AI models में छिपा भेदभाव (bias)। ज़्यादातर AI मॉडल्स western data से trained होते हैं, जिनमें भारतीय context, भाषा, उच्चारण और सामाजिक संरचना या तो होती नहीं है, या फिर होगी तो बहुत कम। नतीजा? जब आप Hindi या किसी regional language में कोई सवाल पूछते हैं, तो जवाब context के अनुसार सटीक नहीं होता या पूरी तरह से miss हो जाता है।
एक उदाहरण लें — voice assistants (जैसे Alexa या Siri) भारत की विभिन्न बोलियों को ठीक से नहीं पहचान पाते। यह AI bias का साफ़ उदाहरण है। यही असमानता AI inequality और Global South exploitation की ओर इशारा करती है। AI एक बहुत पावरफुल टूल बन चुका है, लेकिन यदि इसे सिर्फ कुछ अमीर देशों की सुविधा के लिए डिज़ाइन किया जाएगा, तो यह टेक्नोलॉजी समानता की बजाय विकसित और विकासशील देशों के बीच का जो गैप है, उसे और बढ़ा देगी।
AI की वजह से किसकी नौकरी जाएगी?
AI का असर आम इंसान, उनकी नौकरियों और मानसिकता पर भी गहराई से हो रहा है। इस बदलाव का सबसे पहला शिकार वो लोग हैं जो repetitive और digital tasks में काम करते थे।
जैसे Content writers, graphic designers, और freelancers जैसे प्रोफेशनल्स अब ChatGPT, MidJourney या Canva AI जैसे tools से replace हो रहे हैं। इससे ना सिर्फ काम के अवसर घटे हैं, बल्कि क्लाइंट्स भी सस्ते और तेज़ विकल्प को चुनने लगे हैं।
BPO industry, जो भारत और Philippines जैसे देशों में लाखों लोगों को रोजगार देती थी, अब AI chatbots और voice assistants की वजह से खतरे में है। उदाहरण के लिए, अमेरिका की एक insurance कंपनी ने हाल ही में अपनी 200+ call center staff को हटा दिया, क्योंकि उन्होंने automated AI response system लागू कर लिया।
अफ्रीका, विशेष रूप से केन्या और उगांडा जैसे देशों में, AI data labeling workers से कम पैसों में high-volume डेटा तैयार करवाया जा रहा है, लेकिन उन्हें न तो credit मिलता है, न ही health या job security जैसे basic rights। यही सिचुएशन digital exploitation का नया चेहरा बन चुकी है।
भारत में भी AI के असर से बहुत से युवा बिना proper AI education के पीछे छूट रहे हैं। AI tools पर dependency इतनी बढ़ रही है कि students बिना खुद सोचे content generate कर रहे हैं। नतीजा — critical thinking और originality में गिरावट हो रही है। इस पूरी तस्वीर से साफ होता है कि अगर सरकार और समाज समय रहते AI awareness, skill upgradation और ethical framework नहीं लाए, तो बहुत बड़ी आबादी सिर्फ AI systems की end-user बनकर रह जाएगी — और शिकार भी।
World’s First Comprehensive Law: EU AI Act
AI जितना तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, उतना ही ज़रूरी हो गया है कि इसे ethical और responsible तरीके से regulate किया जाए। आज दुनिया के कुछ देश इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, लेकिन ज्यादातर सिर्फ यूजर बने हुए हैं। European Union (EU) ने दुनिया का पहला व्यापक कानून (world’s first comprehensive) — “AI Act” — बनाया है, जिसमें fairness, transparency और accountability को कानूनी बनाया गया है। उदाहरण के तौर पर, ये कानून facial recognition जैसे high-risk tools को regulate करता है, जिससे आम नागरिकों के privacy rights सुरक्षित रह सकें।
दूसरी ओर, United Nations जैसे global institutions भी AI की नीति और मानवाधिकारों के संदर्भ में guidelines बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी तरह का binding international framework सामने नहीं आया है। इसका मतलब है कि हर देश अपने हिसाब से AI को regulate कर रहा है, जिससे ethical gaps और power imbalance बढ़ रहा है।
भारत इस global AI regulation में अब तक काफी पीछे है। ना तो कोई strong national AI law है, और ना ही भारत की ethical और linguistic values AI models में prominently reflect होती हैं। जब तक भारत अपने कानून, भाषाओं और नैतिक मूल्यों को AI systems में शामिल नहीं करेगा, तब तक यह तकनीक हमारे लिए “digital colonization” का ही एक आधुनिक रूप बनी रहेगी — जहां हम सिर्फ consumer रहेंगे, contributor नहीं।
AI के इस दौर में भारत को तय करना होगा कि उसे सिर्फ user बनना है या creator. Public और private sectors को मिलकर AI R&D investment बढ़ाना चाहिए, Regional language AI models पर फोकस होना चाहिए, और Data localization को लागू किया जाना चाहिए। अगर भारत ने अभी initiative नहीं लिया, तो हमेशा “AI backend labor” ही बना रहेगा। लेकिन अगर visionary policy और indigenous AI development को प्राथमिकता दी जाए, तो भारत भी global AI leaders की लिस्ट में शामिल हो सकता है।
क्या भारत AI Developer बन पायेगा?
भारत में AI को लेकर governmental और private दोनों स्तरों पर काम हो रहा है, लेकिन बहुत स्लो है। NITI Aayog ने National AI Mission लॉन्च किया है, लेकिन ग्राउंडलेवेल पर जीरो काम हुआ है। Private कंपनियां जैसे Krutrim और Saarthi.ai कुछ नई पहल कर रही हैं, लेकिन वे अभी भी global AI giants से बहुत पीछे हैं। हमारी regional languages, local problems और भारतीय perspective को reflect करने वाले models की सख्त ज़रूरत है। India को AI development, data localization, और AI infrastructure के क्षेत्र में तेज़ी से निवेश करना होगा ताकि वह AI superpower बन सके
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