विदेशी निवेशकों की भारतीय शेयर बाजार से निकासी: आर्थिक अस्थिरता की नई चुनौती

FII withdrawal reasons: भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों (Foreign Institutional Investors, FIIs) की ओर से बड़े पैमाने पर निवेश निकासी देखी जा रही है। अक्टूबर 2024 के दौरान, विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से $10 बिलियन (लगभग ₹83,000 करोड़) से अधिक की निकासी की, जो महामारी के बाद सबसे बड़ी मानी जा रही है। इस भारी निकासी ने बाजार में अस्थिरता बढ़ाई है और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।

निकासी के प्रमुख कारण

विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल की मंदी, कमजोर कॉर्पोरेट आय, और बढ़ती वैश्विक आर्थिक चिंताओं के कारण विदेशी निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो में बदलाव किया है। साथ ही, अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी और डॉलर की मजबूती ने निवेशकों को अमेरिकी बाजारों की ओर आकर्षित किया है। इसके परिणामस्वरूप, विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से अपनी पूंजी निकालकर अधिक सुरक्षित और लाभकारी निवेश विकल्पों का रुख किया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

विदेशी निवेशकों की इस निकासी का सीधा असर भारतीय रुपये पर पड़ा है। डॉलर की बढ़ती माँग से रुपया कमजोर हुआ है, जिससे आयात महंगा हो गया है और महंगाई पर दबाव बढ़ा है। निकासी के कारण भारतीय शेयर बाजार में उथल-पुथल देखी जा रही है, जिसने निवेशकों के विश्वास को प्रभावित किया है। इसके अलावा, विदेशी निवेशकों के जाने से कंपनियों को नई पूंजी जुटाने में मुश्किल हो सकती है, जिससे उनके विस्तार और विकास की योजनाएँ प्रभावित हो सकती हैं।

बाजार में अस्थिरता

विदेशी निवेशकों की निकासी के चलते सेंसेक्स और निफ्टी जैसे प्रमुख सूचकांकों में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया है। हालांकि, घरेलू निवेशक बाजार में स्थिरता लाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन विदेशी निवेशकों की बिकवाली का दबाव इतना अधिक है कि इसे पूरी तरह संतुलित करना कठिन हो रहा है। इस अस्थिरता का असर विशेष रूप से आईटी, बैंकिंग, और वित्तीय क्षेत्र पर पड़ा है, जो विदेशी निवेशकों के प्रमुख क्षेत्रों में गिने जाते हैं।

वैश्विक घटनाओं का प्रभाव

रूस-यूक्रेन संघर्ष, मध्य-पूर्व में अस्थिरता, और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जैसे वैश्विक कारक भी इस निकासी में योगदान दे रहे हैं। इन घटनाओं ने वैश्विक सप्लाई चेन में बाधा डालने के साथ-साथ मुद्रास्फीति को भी बढ़ाया है। साथ ही, विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी की संभावनाओं के कारण निवेशकों में अस्थिरता का माहौल है, जिसका सीधा असर भारतीय बाजार पर पड़ रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फिलहाल ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन आर्थिक अस्थिरता पर कड़ी निगरानी बनाए हुए है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर निकासी का यह ट्रेंड जारी रहता है, तो भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति में बदलाव लाने पर विचार करना पड़ सकता है। सरकार भी घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नए कदम उठा सकती है, जैसे कर राहत या एफडीआई नियमों में सुधार।

आईटी, बैंकिंग और फाइनेंस जैसे सेक्टर, जो विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं, इस निकासी से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। आईटी सेक्टर की बड़ी कंपनियाँ, जो अपने राजस्व का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी बाजारों से कमाती हैं, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी और डॉलर की मजबूती से प्रभावित हुई हैं। इसके अलावा, बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में भी अस्थिरता और बिकवाली का दबाव बढ़ा है।

भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ

यदि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत नहीं मिले, और विदेशी बाजारों में निवेशकों को आकर्षित करने वाले कारक बने रहे, तो निकासी का यह सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक को अतिरिक्त कदम उठाने की आवश्यकता हो सकती है। निवेशकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए घरेलू आर्थिक सुधार और स्थिरता के संकेत देना जरूरी होगा।

विदेशी निवेशकों की इस निकासी ने भारतीय शेयर बाजार में अस्थिरता और चिंता का माहौल बना दिया है। यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी की तरह है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो यह आर्थिक स्थिरता के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। निकासी के इस ट्रेंड को रोकने के लिए आर्थिक सुधारों और निवेशकों के विश्वास को पुनः स्थापित करने के प्रयासों की आवश्यकता है।

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