Latest News: उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम में ग्लेशियर फटने और भारी बर्फबारी के चलते तबाही (Badrinath Glacier Burst) मच गई है। जानकारी के अनुसार चमोली जिले के माना घस्तौली को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर ग्लेशियर टूटा है। इसमें 57 मजदूर बर्फ में दब गए थे, लेकिन इनमें से 16 को बचा लिया गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तक 41 मजदूर लापता हैं। राहत और बचाव कार्य तेजी से जारी है। लेकिन बद्रीनाथ धाम केवल प्राकृतिक आपदाओं के लिए चर्चा में नहीं रहता, यह भारत के चार धामों में से एक है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। यह पहली बार नहीं है, जब उत्तराखंड में नेचुरल डिजास्टर देखने को मिले हैं, 2013 में केदारनाथ मंदिर की तबाही सभी को याद होगी।
बद्रीनाथ धाम भारत के चार धामों में से एक है, और इसे अलकनंदा नदी के किनारे स्थित भगवान विष्णु का पवित्र धाम माना जाता है। कहा जाता है कि इसे शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में दोबारा बनवाया था, और तब से यह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बना हुआ है। यह मंदिर 3,300 मीटर (10,827 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो इसे दुनिया के सबसे ऊंचे तीर्थस्थलों में से एक बनाता है। हर साल मई से नवंबर तक श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं, क्योंकि सर्दियों में मंदिर बर्फ से ढक जाता है।
बद्रीनाथ यात्रा के लिए कब जाएँ?
चारधाम यात्रा उत्तराखंड के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा होती है। बद्रीनाथ (भगवान विष्णु का धाम), केदारनाथ (भगवान शिव का धाम), गंगोत्री (गंगा माता का धाम), और यमुनोत्री (यमुना माता का धाम). बद्रीनाथ यात्रा के लिए मई से नवंबर का समय सबसे अच्छा है। यहाँ भी अगर आप जाना चाहते हैं तो ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन जरूरी है। उत्तराखंड सरकार ने यात्रा को व्यवस्थित करने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन लागू किया है। बता दें सर्दियों में मंदिर बंद रहता है, और मूर्ति को जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में शिफ्ट किया जाता है, और इस दौरान वहां पर उनकी पूजा होती है। अगर आप यात्रा पर जाना चाहते हैं, तो मौसम प्रिडिक्शन्स को देख लें, अगर मौसम अच्छा है, तभी जाएँ, क्योंकि ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
क्यों बढ़ रहा ग्लेशियर फटने का खतरा?
इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन (Climate Change) है, जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और ग्लेशियर फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। 2013 में आई केदारनाथ डिजास्टर में 5,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उत्तराखंड में बढ़ते टूरिज्म, और unscientific construction work से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। ग्लेशियर पिघलने से नदियों में बाढ़ आने की संभावना बढ़ गई है, जिससे पूरे राज्य को खतरा है।
हालाँकि प्रशासन राहत और बचाव कार्य कर रहा है। NDRF और SDRF की टीमें लगातार लोगों को सुरक्षित निकालने में लगी हैं। उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए मौसम अपडेट, हेल्पलाइन और अलर्ट सिस्टम लागू किए हैं। लेकिन अगर सही कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र और भी खतरनाक हो सकता है।
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