Today’s Viral News: पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ लगभग पूरे भारत के लोगों के दिलों में एक ऐसा नाम गूँज रहा है, जो उन्हें अध्यात्म के लिए मार्गदर्शन दे रहा है। हम बात कर रहे हैं प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज जी की (Viral Premanand Maharaj)। लेकिन कई लोग उनके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, और कई लोगों को तो यह भी पता नहीं होगा कि उनका असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है। इस आर्टिकल में आज हम उनकी जिंदगी और उससे जुड़े कई रहस्यों को जानने की कोशिश करेंगे।
बचपन और पारिवारिक जिंदगी
अनिरुद्ध कुमार का जन्म 1972 में कानपुर के सरसौल में हुआ था। अनिरुद्ध बचपन से ही अपने दादा की तपस्वी जीवनशैली से बहुत प्रभावित थे। मान्यताओं के अनुसार अनिरुद्ध ने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही घर छोड़ दिया था। उस वक्त वो 9वीं क्लास में थे, जब उन्हें आध्यात्मिकता की ओर गहरा आकर्षण महसूस हुआ, उन्होंने सांसारिक सुखों को त्यागने और ब्रह्मचर्य का जीवन अपनाने का विकल्प चुना। शुरू में मठवासी नाम स्वामी आनंदाश्रम अपनाने के बाद, उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि पारंपरिक आश्रम जीवन उनकी आंतरिक पुकार के अनुरूप नहीं था। और इसी विचार के साथ वो निकल पड़े अध्यात्म की नगरी वाराणसी की ओर, और इस तरह उनके अध्यात्म में एक नया मोड़ आया।
राधावल्लभ परंपरा में दीक्षा?
वृंदावन में अनिरुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा ने एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया। राधावल्लभ मंदिर के तिलकायत अधिकारी मोहित मराल गोस्वामी ने उन्हें राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षा दी और यही वो स्थल था, जहाँ उन्होंने “शरणगति मंत्र” प्राप्त किया। कुछ ही समय बाद, उनकी मुलाकात अपने वर्तमान गुरु, पूज्य श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज से हुई, जिन्हें वो प्यार से “बड़े महाराज” बुलाते हैं, आप ने कई बार प्रेमानंद जी महाराज की जुबान से यह सुना होगा। नाम से जाना जाता है। बड़े महाराज के मार्गदर्शन में, उन्होंने “निज मंत्र” प्राप्त किया, सहचरी भाव और नित्य विहार रस की प्रथाएं सीखी और यहीं से अनिरुद्ध बन गए लोगों के चहेते प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज। प्रेमानंद महाराज किसी की आध्यात्मिक यात्रा में गुरु की अपरिहार्य भूमिका पर जोर देते हैं। वे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों में सामंजस्य बनाए रखने के साधन के रूप में ब्रह्मचर्य के संरक्षण की वकालत करते हैं। वे अक्सर कहते हैं, “आध्यात्मिकता जीवन, अस्तित्व और सत्य का सार है।”
सोशल मीडिया पर क्यों हुए वायरल?
आज के डिजिटल युग में, प्रेमानंद महाराज ने अपने संदेश को फैलाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया है। जब यह आर्टिकल लिखा जा रहा है, उस वक्त “भजन मार्ग” हैंडल के तहत काम करते हुए, उनके इंस्टाग्राम पर 20 मिलियन से ज्यादा फॉलोवर हैं। YouTube पर 11.3M सब्सक्राइबर हैं। आज इंस्टाग्राम रील और YouTube शॉर्ट्स के माध्यम से साझा किए गए उनके सत्संग वीडियो बहुत फेमस हो गए हैं, जिसने न सिर्फ भारत के लोग, दुनिया भर के भक्त उनसे बहुत इन्फ्लुएंस हो रहे हैं। यहाँ तक कि बड़ी हस्तियां, जैसे क्रिकेटर विराट कोहली, अभिनेत्री अनुष्का शर्मा और अभिनेत्री हेमा मालिनी जैसी हस्तियाँ भी प्रेमानंद महाराज जी को सुनती हैं।
पदयात्रा को क्यों बंद करना पड़ा?
असल में पिछले कुछ समय से वृंदावन में प्रेमानंद महाराज की हर रात 2 बजे के करीब एक पदयात्रा (तीर्थयात्रा) निकलती थी, जब भक्त उनके दर्शन करते थे। छटीकरा रोड स्थित अपने निवास से शुरू होकर वे श्री हित राधा केली कुंज आश्रम तक पैदल जाते थे, जहाँ उनकी एक झलक पाने के लिए भक्त सड़कों पर कतार में खड़े रहते थे। इस यात्रा में ढोल,नगाड़े और आतिशबाज़ी होती थी, जिससे लोकल लोगों को रात को सोने में तकलीफ होती थी। ज़ाहिर सी बात है, रोज़ रोज़ शोरगुल के बीच नींद आना हर किसी के लिए मुश्किल है। इसी वजह से वाराणसी में कई लोग और खासकर महिलाएं सड़क पर उतर आयी और उन्होंने इस पदयात्रा के खिलाफ प्रोटेस्ट किया था कि इसे बंद किया जाए।
यह देखते हुए प्रेमानंद महाराज के इंस्टाग्राम हैंडल से पदयात्रा को अनिश्चित काल तक बंद रखने की एक पोस्ट शेयर हुई थी, लेकिन उसके बावजूद उनके भक्त हमेशा की तरह पदयात्रा स्थल पर पहुंच गए। इसके 2 दिन बाद दोबारा शुरू कर दिया गया, लेकिन रात 2 बजे की बजाय अब यात्रा का समय सुबह 4 बजे रखा गया है।
क्या आपने प्रेमानंद जी की यह किताबें पढ़ी हैं?
अपने प्रवचनों से परे, प्रेमानंद महाराज ने साधकों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने के लिए कई रचनाएँ लिखी हैं। “ब्रह्मचर्य” (2019): ब्रह्मचर्य के महत्व पर एक ग्रंथ। “एकांतिक वार्तालाप” (2019): आध्यात्मिकता पर आवश्यक प्रश्नों और उत्तरों का संकलन। “हित सद्गुरु देव के वचनामृत” (2020): श्रद्धेय हित सद्गुरु की शिक्षाएँ। प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की एक युवा तपस्वी से एक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक गुरु बनने की यात्रा आध्यात्मिक विकास और सामाजिक बेहतरी के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। उनकी शिक्षाएँ अनगिनत व्यक्तियों को प्रेरित करती रहती हैं, उन्हें भक्ति, अनुशासन और आंतरिक सद्भाव के मार्ग पर ले जाती हैं। जैसा कि वे अक्सर अपने अनुयायियों को याद दिलाते हैं, “ब्रह्मचर्य की अमूल्य संपत्ति को संरक्षित करें, जो एक स्वस्थ, संतुलित और आध्यात्मिक रूप से उन्मुख जीवन जीने में बहुत सहायता करती है।”
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