Waste Management In India: बढ़ती डंप साइट; 2040 तक 90% ठोस अपशिष्ट को हटाने का धुंधला लक्ष्य

Waste Management In India: तेजी से बढ़ते शहरीकरण, आर्थिक विकास और शहरी खपत की उच्च दरों के कारण, भारत दुनिया के उन टॉप 10 देशों में शामिल है, जो नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) उत्पन्न करते हैं। द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत एक वर्ष में 62 मिलियन टन (MT) से अधिक कचरा उत्पन्न करता है! भारत की जनसंख्या 2047 तक 1.6 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है। इसका सीधा असर इसके कचरे के उत्पादन पर पड़ेगा। 

देश में 3000 से ज्यादा डंपसाइट

भारत, जहां 142 करोड़ जनसँख्या है, तेजी से बढ़ते शहरों, उद्योग और उपभोग पैटर्न के कारण प्राकृतिक पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने वाली चुनौतियों का सामना कर रहा है। वर्तमान में, देश भर में लगभग 3,100 से ज्यादा डंपसाइट हैं, जिनमें लगभग 160 मिलियन टन कचरा पड़ा है। अगर एरिया के हिसाब से देखें तो ये डंपसाइट लगभग 15,000 हेक्टेयर भूमि पर फैली हुई हैं, यानी 14,700 फुटबॉल मैदानों के बराबर।

2050 तक 400 मिलियन टन होने की उम्मीद

देश में हम प्रतिदिन लगभग 160,000 टन कचरा पैदा कर रहे हैं, जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत या तो लैंडफिल में जा रहा है या फिर उसे कलेक्ट ही नहीं किया गया है, जिस वजह से इधर उधर पड़ा है। और भारतीय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुमान के अनुसार भारत में 2030 तक वार्षिक अपशिष्ट उत्पादन बढ़कर 165 मीट्रिक टन हो जाएगा।  2050 तक, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) 436 मिलियन टन तक बढ़ जाएगा।

वेस्ट मैनेजमेंट की कमी

भारत में पर्याप्त कचरा संग्रहण अवसंरचना (Adequate waste collection infrastructure) का अभाव सबसे बड़ी समस्या है। देश में केवल 21 मिलियन कचरा संग्रहकर्ता (garbage collectors) हैं, जिसकी तुलना अगर हम चीन से करें तो, चीन में 700 मिलियन कचरा संग्रहकर्ता (garbage collectors) हैं। असल में शहरों की बढ़ती आबादी की वजह से शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लगभग 1.5 लाख मीट्रिक टन (MT/D) कचरा पैदा होता है, जिसमें से लगभग 76% का प्रसंस्करण (processed) किया जाता है।

Zero Waste Management

आजकल, जीरो-वेस्ट लिविंग का कॉन्सेप्ट पूरे विश्व में लोकप्रिय हो रहा है, जो एक टिकाऊ जीवन शैली को देखता है जिसमें प्राकृतिक पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाया जाए। आजकल, जीरो-वेस्ट लिविंग की अवधारणा पूरे विश्व में लोकप्रिय हो रही है, जो एक स्थायी जीवन शैली को देखती है, जिसमें प्राकृतिक पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाया जाता है। 

असल में जीरो वेस्ट का उद्देश्य 2040 तक लैंडफिल और भस्मक (incinerators) से 90% अपशिष्ट को हटाना है। जीरो वेस्ट को प्राप्त करने के लिए तीन बेंचमार्क लक्ष्य निर्धारित किए हैं। पहला -2012 तक लैंडफिल में निपटाए जाने वाले प्रति व्यक्ति ठोस अपशिष्ट में 20 प्रतिशत की कमी लाना था। दूसरा- 2020 तक लैंडफिल और भस्मक से 75 प्रतिशत ठोस अपशिष्ट को हटाना, और तीसरा- 2040 तक लैंडफिल और भस्मक से 90 प्रतिशत ठोस अपशिष्ट को हटाना है।

लैंडफिल साइटों के लिए नियम

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के अनुसार, लैंडफिल साइटों का चयन निर्दिष्ट विनियामक मानदंडों के आधार पर किया जाएगा। ये साइटें ऐसे कचरे के लिए उपयुक्त हैं जो गैर-बायोडिग्रेडेबल, गैर-पुनर्चक्रणीय (non-recyclable), गैर-पुनर्प्राप्ति योग्य (non-recoverable) और गैर-उपचार योग्य (non-treatable) हैं। नियमों के अनुसार लैंडफिल साइट नदियों से 100 मीटर, झीलों और तालाबों से कम से कम 200 मीटर, और आवासीय क्षेत्रों से 500 मीटर दूर होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, बाढ़ के मैदानों, महत्वपूर्ण आवासीय क्षेत्रों, तटीय विनियमन क्षेत्रों, आर्द्रभूमि, अस्थिर क्षेत्रों जैसे भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों और संदूषण से ग्रस्त क्षेत्रों में लैंडफिल निर्माण निषिद्ध है। सवाल यह है कि क्या इन नियमों का पालन हो रहा है?

waste management के लिए एक्शन प्लान

Extended Producer Responsibility (EPR) Mechanism. EPR एक ऐसी पालिसी है, जिसके तहत कचरे की कलेक्शन, रीसाइक्लिंग, और डिस्पोजल के लिए कचरा प्रोडूस करने वालों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

Swachh Bharat Mission

यह योजना के के अनुसार, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (plastic waste management) सहित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (solid waste management) के लिए स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है। केंद्र सरकार ने “कचरा मुक्त शहर” बनाने के समग्र दृष्टिकोण के साथ वर्ष 2021 में स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 (एसबीएम-यू 2.0) शुरू किया, जिसके तहत यह लक्ष्य रखा गया कि सभी शहरी स्थानीय निकाय कम से कम 3-स्टार प्रमाणित हो जाएंगे।

भारत का सबसे साफ़ शहर

2023 के वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण के अनुसार, पश्चिम बंगाल के हावड़ा को भारत का सबसे गंदा शहर बताया गया है। वर्तमान में, भारत का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर, अपने 550 टन बायोडिग्रेडेबल कचरे को प्रतिदिन 17,000 किलोग्राम बायो-सीएनजी में बदल रहा है। यह क्षेत्र भारत के भविष्य के अपशिष्ट प्रबंधन परिदृश्य के लिए एक गेम-चेंजर हो सकता है, अन्य शहरों को इसके मॉडल को अपनाना चाहिए, क्योंकि भारत में कृषि-अवशेष अपशिष्ट और बायोडिग्रेडेबल घरेलू अपशिष्ट बड़ी मात्रा पैदा होता है। 2050 तक उम्मीद कर सकते हैं कि कचरा प्रबंधन के इंदौर मॉडल का अनुसरण करने वाले कई और शहर होने चाहिए।

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