Breaking News: उत्तर प्रदेश में हाल ही में किसानों ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा, और यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन (Farmer Protest) किया। किसानों की मुख्य मांगें उनकी ज़मीन का उचित मुआवज़ा और भूमि आवंटन से संबंधित हैं। किसान प्राधिकरण से अपनी जमीन के लिए fair compensation और rehabilitation की मांग कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि उनकी ज़मीन का commercial purposes के लिए इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन उन्हें पर्याप्त लाभ नहीं दिया गया। किसानों ने स्पष्ट किया है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे अपने आंदोलन को तेज करेंगे और जरूरत पड़ने पर दिल्ली तक मार्च करेंगे। यह प्रदर्शन 2020-2021 के किसान आंदोलन के बाद का एक reminder है कि MSP और भूमि विवाद जैसे मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं। फरवरी 2024 में भी किसानों ने MSP की कानूनी गारंटी और WTO से कृषि क्षेत्र को बाहर रखने की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ट्रैक्टर रैलियां की थीं।
Indian agriculture देश की economy का एक प्रमुख आधार है, जो GDP में एक बड़ा योगदान देता है और 50% से अधिक working population को रोजगार प्रदान करता है। यह ना केवल food security के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि rural development और export earnings का भी मुख्य स्रोत है। ऐसे में किसानों के आंदोलन हर दौर में agricultural policies को shape करते रहे हैं। (Pre-Independence) British rule के दौरान हुए आंदोलनों ने exploitative systems को खत्म करने और किसानों को empowerment देने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया। आजादी के बाद, (Post-Independence) इन आंदोलनों ने Land Reforms, MSP policies, और irrigation infrastructure को improve करने में मदद की। Recent protests जैसे 2020-2021 Farmers’ Protest ने globalization और privatization के कृषि क्षेत्र पर प्रभाव को national level पर highlight किया।
Farmer Protest: Brief History
भारत में कृषि आंदोलनों की शुरुआत British colonial rule के दौरान हुई, जब किसानों को exploitative systems और unjust taxation policies के कारण संघर्ष करना पड़ा।
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Champaran Satyagraha (1917): महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह आंदोलन British landlords द्वारा लागू Tinkathia System के खिलाफ था, जिसमें किसानों को अपनी जमीन पर जबरन indigo उगाने पर मजबूर किया जाता था। इस आंदोलन ने न केवल Tinkathia System को खत्म कराया बल्कि गांधीजी की non-violent resistance approach की नींव भी रखी।
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Kheda Satyagraha (1918): यह आंदोलन भी महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ, जहां Gujarat के किसानों ने drought और high taxation के खिलाफ आवाज उठाई। British government ने अंततः किसानों को tax relief प्रदान किया।
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Bardoli Satyagraha (1928): सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में हुआ यह आंदोलन बढ़े हुए land taxes के खिलाफ था। किसानों के collective resistance ने British authorities को taxes वापस लेने पर मजबूर कर दिया।
Post-Independence Agrarian Movements
आजादी के बाद भी किसानों की समस्याएं समाप्त नहीं हुईं। Land reforms, minimum support price (MSP), और loan waivers जैसे मुद्दों पर कई आंदोलन हुए।
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Telangana Peasant Rebellion (1946-1951): यह आंदोलन feudal landlords के खिलाफ हुआ, जिसमें किसानों ने exploitation और unfair practices का विरोध किया।
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Green Revolution Impact (1960s): Green Revolution ने production बढ़ाया, लेकिन small और marginal farmers के लिए inequality और debt crises भी बढ़ीं।
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Naxalbari Uprising (1967): West Bengal के Naxalbari village में शुरू हुआ यह आंदोलन छोटे और marginal farmers के लिए equitable land distribution की मांग को लेकर था। हालांकि, यह आंदोलन हिंसक हो गया और radical agrarian struggles का प्रतीक बन गया।
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Green Revolution and Its Aftermath (1960s-1970s): Green Revolution ने भारत में food production बढ़ाया, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी सामने आए। Small और marginal farmers को inequality का सामना करना पड़ा। Monoculture और excessive fertilizer usage के कारण environmental degradation बढ़ा। Debt crisis और regional disparity ने किसानों को आंदोलनों के लिए प्रेरित किया।
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Bharatiya Kisan Union Movements (1980s): ये आंदोलन fair pricing, electricity subsidies, और irrigation facilities की मांग को लेकर हुए।
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Kisan Long March (2018): Maharashtra में 2018 का यह आंदोलन किसानों की land rights, loan waivers, और MSP policies को लेकर एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था। इसमें लगभग 50,000 किसानों ने Nashik से Mumbai तक पैदल मार्च किया।
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Farmers’ Protests (2020–2021): यह स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा किसान आंदोलन माना जाता है, जहां farmers ने तीन contentious farm laws का विरोध किया। ये आंदोलन national और international level पर चर्चित रहा। किसानों ने MSP की legal guarantee, और privatization की नीतियों को रोकने की मांग की। अंततः, सरकार को तीनों कानून वापस लेने पड़े।
Farmer Protests: कारण
Economic Factors: भारत के किसान कई economic challenges का सामना कर रहे हैं, जो उन्हें आंदोलनों की ओर धकेलते हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या है Minimum Support Price (MSP) का सीमित coverage। MSP सिर्फ कुछ crops तक सीमित है, जबकि अधिकांश किसान market-driven prices पर निर्भर रहते हैं, जो उनकी income को unstable बनाता है। इसके अलावा, loan burdens और indebtedness एक बड़ी समस्या है, जहां high-interest loans और inadequate relief ने किसानों को debt trap में फंसा दिया है। Input costs जैसे fertilizers, seeds, और fuel की बढ़ती कीमतों ने production cost बढ़ा दी है, जबकि किसानों की income वर्षों से stagnant बनी हुई है। Crop failures भी एक महत्वपूर्ण कारण हैं, जो unpredictable weather patterns और climate change के कारण बढ़ रहे हैं। इससे किसानों की vulnerabilities और income losses बढ़ती जा रही हैं, जो उन्हें अपनी आवाज उठाने पर मजबूर करती हैं।
Policy and Structural Factors: Policy और structural issues भी किसानों के आंदोलनों का मुख्य कारण हैं। Land reforms और tenancy laws का uneven implementation ने कई किसानों को ownership rights से वंचित रखा है। इससे small और marginal farmers को कोई significant benefits नहीं मिल पाए हैं। Agricultural Produce Market Committees (APMCs) के monopoly और corruption की वजह से किसानों को fair prices नहीं मिल पाते। Direct market access की कमी ने उनकी bargaining power को कमजोर किया है। 1990s की liberalization policies और WTO agreements ने Indian agriculture को global competition के लिए खुला छोड़ दिया। Subsidies की कमी और price volatility के कारण farmers पर financial pressure बढ़ गया है। हाल ही में, 2020-2021 के तीन कृषि कानूनों ने privatization और MSP loss की आशंका पैदा की। इन laws ने APMCs के role को dilute किया और corporate farming को बढ़ावा दिया। किसानों के लंबे protest के बाद सरकार को इन laws को वापस लेना पड़ा।
Social and Regional Disparities: किसानों के आंदोलन में regional और social disparities भी बड़ा कारण हैं। Punjab और Haryana जैसे राज्यों में MSP coverage ज्यादा है, जबकि Maharashtra और अन्य सूखे क्षेत्रों में agrarian distress अधिक है। यह regional disparity आंदोलनों को बढ़ावा देती है। Caste और class dynamics भी agrarian protests में अहम भूमिका निभाती हैं। Women farmers का योगदान अक्सर नजरअंदाज किया जाता है, लेकिन recent protests में उनकी भागीदारी ने gender inequality के मुद्दे को सामने रखा है। Rural distress के कारण कई किसान urban areas की ओर migrate करते हैं, लेकिन वहां low-paying jobs मिलने से उनकी समस्याएं और बढ़ जाती हैं। यह dual pressure किसानों के आंदोलनों को और मजबूती देता है।
2020–2021 Farmers’ Protest
सितंबर 2020 में, केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून पारित किए, जिन्हें किसानों ने अपने हितों के खिलाफ माना। इसके विरोध में, पंजाब और हरियाणा के किसान संगठनों ने आंदोलन शुरू किया, जो नवंबर 2020 में “दिल्ली चलो” मार्च के रूप में उभरा। हजारों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर—सिंघु, टिकरी, और गाज़ीपुर बॉर्डर्स—पर डेरा डाल दिया। उनकी मुख्य मांगें थीं: तीनों कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी। सरकार और किसान नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन गतिरोध जारी रहा। अंततः, नवंबर 2021 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की, जिसके बाद दिसंबर 2021 में किसान अपने घर लौटे।
यह आंदोलन मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान के किसानों द्वारा संचालित था, लेकिन देशभर से समर्थन मिला। सोशल मीडिया ने आंदोलन को व्यापक पहुंच दी; #FarmersProtest जैसे हैशटैग्स ट्रेंड करने लगे, और अंतरराष्ट्रीय हस्तियों जैसे रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग ने भी समर्थन जताया। विभिन्न क्षेत्रों—छात्र, मजदूर संघ, और सामाजिक संगठनों—ने एकजुटता दिखाई, जिससे आंदोलन को और बल मिला।
आंदोलन के दौरान, ठंड, बीमारी, और अन्य कारणों से कई किसानों की मृत्यु हुई। सटीक आंकड़े विवादित हैं, लेकिन विभिन्न स्रोतों के अनुसार, 500 से अधिक किसानों की जान गई। इनमें से कुछ ने आत्महत्या भी की। लंबे समय तक आंदोलन में शामिल रहने से परिवारों पर आर्थिक और मानसिक प्रभाव पड़ा। NGOs और स्वयंसेवकों ने भोजन, कंबल, और चिकित्सा सहायता प्रदान की, जिससे आंदोलनकारियों को राहत मिली।
Global Farmers’ Movements
भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में फार्मर प्रोटेस्ट हुए हैं। और किसानों के आंदोलनों में चाहे वह किसी भी देश में हों, कुछ common themes दिखाई देती हैं। जैसे सभी किसान अपने उत्पादों के लिए बेहतर और स्थिर prices की मांग करते हैं। Corporate farming और large-scale agribusinesses के कारण छोटे किसानों का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है। Climate change के कारण unpredictable weather patterns और crop failures ने farmers की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। साथ ही, technological advancements तक पहुंच सीमित होने के कारण inequality और बढ़ रही है।
France and EU’s Agricultural Policies
Europe में किसान आंदोलन अक्सर subsidy cuts और environmental laws के खिलाफ होते हैं। France में Farmers ने EU की environmental laws और subsidy cuts का विरोध किया है, जो उन्हें production costs बढ़ाने और market competition का सामना करने के लिए मजबूर करते हैं। Tractors के साथ बड़े-बड़े प्रदर्शनों ने उनकी आवाज को national और EU level पर मजबूती दी है। लेकिन आज EU की Common Agricultural Policy (CAP) किसानों को subsidies और financial support प्रदान की है, लेकिन policy reforms के कारण छोटे farmers को challenges का सामना करना पड़ता है। यह protests का एक प्रमुख कारण है।
United States: US में किसानों का संघर्ष अलग-अलग समय पर अलग मुद्दों पर केंद्रित रहा है। Great Depression (1930s) में Economic collapse के दौरान, किसानों ने falling prices और foreclosure के खिलाफ प्रदर्शन किया। यह आंदोलन federal subsidies और price support policies के रूप में बड़े reforms का कारण बना। और आज फिर US में trade policies, जैसे China-US tariff war, और climate change-related challenges ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। Drought और unpredictable weather patterns के कारण crop failures आम हो गए हैं।
South Asia में भारत के अलावा, Pakistan, Bangladesh, और Nepal में भी agrarian struggles देखने को मिलते हैं। Pakistan में सूखे और rising fertilizer costs के कारण किसान आंदोलन करते हैं। जबकि Bangladesh में Floods और extreme weather events ने यहां की agriculture-based economy को प्रभावित किया है, जिससे protests होते हैं। वहीँ Nepal में Land ownership और small-scale farmers की समस्या प्रोटेस्ट का कारण बनती हैं।
Farmer Protest vs सरकार का वादा?
2020–2021 के किसान आंदोलन ने सरकार को कई महत्वपूर्ण policy changes करने पर मजबूर किया। आंदोलन के दौरान किसानों ने MSP की कानूनी गारंटी (MSP Assurance) की मांग की। हालांकि, सरकार ने MSP जारी रखने का आश्वासन दिया, लेकिन इसे कानूनी रूप से enforce करने पर अभी भी बातचीत जारी है। नवंबर 2021 में, सरकार ने तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की, जो आंदोलन की सबसे बड़ी जीत मानी गई। कई राज्यों ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों के लिए financial compensation की घोषणा की, लेकिन national level पर इस तरह की कोई व्यापक नीति नहीं बनाई गई।
हालांकि आंदोलन ने कुछ immediate reforms लाए, लेकिन कई महत्वपूर्ण मुद्दे अभी भी unresolved हैं। Indian agriculture को एक holistic approach की जरूरत है, जो सिर्फ MSP या subsidies पर निर्भर न हो। Land reforms, irrigation systems, और credit access जैसे मुद्दों को समान रूप से address करना चाहिए। Fisheries, animal husbandry, और horticulture जैसे allied sectors पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, जबकि ये किसान समुदाय के livelihoods का अहम हिस्सा हैं।
दुनिया भर में agriculture sector में कई देशों ने innovative approaches अपनाई हैं, जिनसे भारत के लिए inspiration लिया जा सकता है। जैसे Israel का drip irrigation model water-scarce regions के लिए आदर्श है। Limited water resources के बावजूद, उन्होंने efficient irrigation systems और water recycling पर जोर देकर agricultural productivity को बढ़ाया। वहीँ Netherlands, दुनिया के सबसे बड़े agricultural exporters में से एक, advanced greenhouses, vertical farming, और AI-based monitoring systems के लिए जाना जाता है। यह भारत के लिए high-tech farming techniques को अपनाने का एक उदाहरण हो सकता है।
भारत में cooperative movements, जैसे Amul, ने किसानों की empowerment और उनके livelihoods को sustainable बनाने में अहम भूमिका निभाई है। Dairy farming में Amul का decentralized और cooperative approach (Amul Model) किसानों को fair pricing और guaranteed market access देता है। ऐसे cooperative models को अन्य agricultural sectors, जैसे horticulture और fisheries, में भी लागू किया जा सकता है।
निष्कर्ष
किसानों को unpredictable climate conditions और crop failures से बचाने के लिए crop insurance schemes को universal और affordable बनाना चाहिए। Technology-driven platforms का इस्तेमाल करते हुए insurance claims को तेज और पारदर्शी बनाया जा सकता है! किसानों के लिए skill development programs और training modules शुरू किए जाने चाहिए, ताकि वे modern farming techniques, climate-resilient crops, और sustainable practices को अपनाने में सक्षम हों। Digital literacy को बढ़ावा देकर farmers को global markets और e-trading platforms से जोड़ा जा सकता है। Environmentally sustainable farming practices को mainstream बनाया जाना चाहिए। Monoculture के बजाय multi-crop systems को बढ़ावा देना।
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