Urban-Rural Poverty: भारत में जनगणना 2011 के अनुसार, 83.3 करोड़ भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे, जो कि उस वक्त कुल आबादी का दो-तिहाई से ज्यादा था। वर्तमान की बात करें, तो केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश की गयी थी। इस सर्वे में कहा गया है कि देश की 65% (2021 डेटा) आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जिसमें से 47% आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। स्टैटिस्टा के अनुसार साल 2022 में भारत में लगभग 908.8 मिलियन लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे और 508 मिलियन से ज्यादा लोग शहरों में रहते हैं।
भारत की शहरी आबादी (Urban Poverty)
2011 की जनगणना के अनुसार, शहरी आबादी 2001-2011 के दौरान 2.76 प्रतिशत प्रतिवर्ष दर से बढ़ी। 1951 से शहरी आबादी में छह गुना वृद्धि हुई है, जो 2011 में 62.4 मिलियन से बढ़कर 377.1 मिलियन हो गई। यू.एन. की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की शहरी आबादी 2035 में 675 मिलियन (67.5 करोड़) होने का अनुमान है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक भारत के 590 मिलियन (59 करोड़) लोग शहरों में रहेंगे, जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका की पूरी आबादी का दोगुना है। ऐसे में भारत के सामने शहरीकरण की चुनौती और SDG 11 के लक्ष्य को पाना जरूरी हो जाएगा। 2023 में, शहरी क्षेत्रों में लगभग 55 मिलियन लोग झुग्गियों में रहते थे, जहां बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच नहीं थी।
भारत में ग्रामीण और शहरी गरीबी
Household Consumption Survey (HCES) की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण गरीबी 2011-12 में 25.7% थी, जो 2022-23 में घट कर 7.2% हो गई है। इसी अवधि के दौरान शहरी गरीबी (Urban Poverty) 13.7% से घट कर 4.6 प्रतिशत हो गई। HCES की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में पहली बार फ़ूड पर household spending 50 प्रतिशत कम हुई है, और शहरों में भी 40% के करीब कम रही है।
जैसा कि महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि भारत गांव में बसता है, लेकिन असल में गॉंव के 280 मिलियन लोग घोर गरीबी (Urban-Rural Poverty) में जी रहे हैं, यानी करीब 31.2% हिस्सा बेहद गरीब है। भारत के 85% किसानों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। भारत के 61% किसान वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं और देश में कृषि योग्य जो कुल एरिया है, उसका 55% वर्षा आधारित खेती के तहत आता है।
unsustainable agricultural practice
भारत की 80% आबादी डायरेक्ट या इंडिरेक्टली एग्रीकल्चर से जुड़ी है, लेकिन भारत की एग्रीकल्चर प्रोडक्शन दुनिया में सबसे कम है। इसका मुख्य कारण कृषि पद्धतियाँ हैं। इसका नतीजा यह है कि भारत के वर्षा आधारित हिस्से सिंचित हिस्सों की तुलना में बहुत कम उत्पादक हैं। जिन क्षेत्रों में लगभग पूरी तरह से एग्रीकल्चर वर्षा पर निर्भर है, वहां किसान अपनी आय का सिर्फ 20-30% कृषि से कमाते हैं, और इसलिए उन्हें मजबूरन पलायन और मजदूरी का सहारा लेना पड़ता है। जबकि जिन क्षेत्रों में Irrigation Facilities हैं, वहां के किसान अपनी आय का 60% कृषि से कमाते हैं।
शहरी गरीबी और भी जटिल और बहुआयामी (multidimensional) है। यह सिर्फ आय या उपभोग की कमी तक ही नहीं, इससे कहीं आगे तक फैली हुई है। बढ़ते शहरीकरण की बदौलत भीड़भाड़ वाले शहरों में शहरी झुग्गियां बढ़ने लगी हैं। यूएन-हैबिटैट के अनुसार, पूरी दुनिया की कुल slum population का 60% एशिया में रहता है। महानगरीय क्षेत्रों (metropolitan areas) में कम आय वाले लोगों की हालत और भी बदतर होती जा रही है। असल में गॉंव के लोग शहरों की ओर पलायन जरूर कर रहे हैं, लेकिन ये उन्हें बहुत महंगा पड़ता है, क्योंकि उनके पास उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिए जरूरी स्किल नहीं होती, इसलिए बस जिन्दा रहने के लिए अर्थव्यवस्था में धक्के खाने पड़ते हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था 5वें नंबर पर पहुँच गयी, लेकिन आप उसमें कहाँ हैं?
भारत दुनिया का पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (5th largest economy) है, लेकिन सवाल यह है कि भारत की इस उपलब्धि में आप कहाँ हैं? आपके जीवन स्तर में क्या परिवर्तन आया है? असल में आज गरीब लोग और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं, और अमीर लोग और ज्यादा अमीर हो गया हैं। 90 के दशक में दुनिया के अरबपतियों की फोर्ब्स की सूची जारी की गयी थी, जिसमें भारत का कोई व्यक्ति शामिल नहीं था। फिर 2000 में इस लिस्ट में 9 भारतीय शामिल हुए, 2017 में उनकी संख्या 119 हो गई। और 2022 में फोर्ब्स द्वारा जारी अरबपतियों की लिस्ट में 166 भारतीयों के नाम हैं।
रूस के बाद सबसे ज्यादा अरबपति भारत में हैं। 2017 की ऑक्सफैम रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 77% संपत्ति टॉप 10% लोगों के पास है। और देश के सबसे अमीर 1% लोगों के पास देश की 58% संपत्ति है। 1990 में अगर आय को देखें, तो टॉप 10% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का करीब 34% हिस्सा था। और 50 फीसदी निम्न तबके के पास महज 20 फीसदी। इतना ही नहीं 2018 में सबसे अमीर लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा आ गया, जबकि गरीबों के लिए ये कम होकर करीब 13% पहुँच गया।
आय में असमानता
जैसा कि हम जानते हैं कुछ आर्गेनाईजेशन ऐसी हैं, जिनमें सीईओ की पगार करोड़ों में है, और कर्मचारियों को 15-20 हज़ार रुपये प्रति महीना मिलते हैं। कुछ निजी कंपनियों में सैलरी का डिफरेंस 1000 फीसदी से ज़्यादा का है। वर्ल्ड इनइक्वलिटी डेटाबेस (डब्लू आईडी) के मुताबिक 1995 से 2021 के बीच सबसे अमीर एक फीसदी लोग और निम्न तबके के 50 फीसदी लोगों के बीच आमदनी का अंतर बढ़ा है।
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2022 ने दिखाया कि 2020 में दुनिया में सबसे अधिक गरीब लोग भारत में रहते थे। असल में ग्रामीण-शहरी प्रवास से जो बेरोजगारी बढ़ती है, वो गरीबी (Urban-Rural Poverty) के चक्र को कायम रखती है। राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन जैसी कई सरकारी योजनाओं के बावजूद शहरी गरीबी मौजूद है। वहीँ गॉंव में कृषि संकट और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) जैसी पहलों के बावजूद, ग्रामीण इलाकों में गरीबी अभी भी व्याप्त है। भारत के विकास की कहानी में, शहरी और ग्रामीण गरीबी बहुत अहमियत रखती है, खासकर तब जब हमने 2030 तक Global Sustainable Goals के लक्ष्य के रूप में गरीबी को ख़त्म करने का टारगेट रखा है। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, हमें गरीबी से जूझ रहे लाखों लोगों को नहीं भूलना चाहिए, जो एक उज्जवल कल के लिए प्रयास कर रहे हैं।
SDG News In Hindi
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