Acidity: एक आम समस्या और इसका समाधान आयुर्वेद के साथ

Health and Fitness: आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में एसिडिटी (Acidity) एक आम समस्या बन गई है। हमारा खानपान, तनावपूर्ण जीवनशैली, और अनियमित दिनचर्या इसका मुख्य कारण है। यह समस्या तब होती है जब पेट में एसिड का उत्पादन सामान्य से अधिक हो जाता है, जिससे पेट और गले में जलन, खट्टी डकारें, अपच, और गैस जैसी परेशानियां होती हैं।

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 30% से अधिक लोग एसिडिटी और पाचन संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
  • लंबे समय तक एसिडिटी का इलाज न किया जाए तो यह पेट के अल्सर और GERD (गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज) जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।
  • अत्यधिक एंटासिड के इस्तेमाल से हड्डियों की कमजोरी और विटामिन बी12 की कमी हो सकती है।

प्रमुख कारण:

  • तैलीय और मसालेदार भोजन का अत्यधिक सेवन।
  • असमय भोजन करना या भोजन छोड़ देना।
  • अत्यधिक कैफीन, अल्कोहल और धूम्रपान।
  • नींद की कमी और लगातार तनाव।
  • अत्यधिक दर्दनिवारक दवाइयों का सेवन।

Acidity का आयुर्वेदिक समाधान

आयुर्वेद में एसिडिटी और पाचन संबंधी समस्याओं के लिए प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का विशेष महत्व है। यह न केवल समस्या का समाधान करती हैं बल्कि शरीर के संतुलन को भी बनाए रखती हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, एसिडिटी को वात, पित्त और कफ दोषों का असंतुलन माना गया है। पित्त दोष के अधिक बढ़ने पर पेट में जलन, खट्टी डकारें और एसिडिटी जैसी समस्याएं होती हैं। इसके उपचार में पटोल पात्रा, वसाका, वराटिका, गुडुची, और अन्य जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है।

Acidity से राहत देने वाली जड़ी-बूटियों के फायदे

पटोल पात्रा (Trichosanthes Dioica):

इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करता है। पटोल पात्रा अपच, एसिडिटी और अफारा जैसी समस्याओं से राहत देता है। यह पित्त दोष को शांत करने में कारगर है।

वसाका (Adhatoda Vasica):

वसाका पेट में अल्सर के गठन को रोकने में मदद करता है। इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पेट की जलन को कम करते हैं। यह पाचन एंजाइम के उत्पादन को बढ़ाकर पाचन क्रिया को सुधारता है।

वराटिका (Cowrie Shell Ash):

वराटिका, जिसे कौड़ी की राख भी कहते हैं, पेट में एसिड और पेप्सिन की मात्रा को नियंत्रित करता है। इसके प्राकृतिक एंटासिड गुण एसिडिटी और सीने में जलन से राहत दिलाते हैं।

गुडुची (Tinospora Cordifolia):

गुडुची, जिसे गिलोय भी कहा जाता है, आंतों के संक्रमण और अमीबिक समस्याओं से लड़ने में मदद करता है। यह पेट की सूजन और जलन को कम करने के लिए जाना जाता है।

चिराता (Swertia Chirata):

चिराता के कड़वे गुण कब्ज और पेट के कीड़ों से राहत दिलाने में सहायक हैं। यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।

पित्तपापड़ा (Fumaria Officinalis):

यह जड़ी-बूटी पित्त दोष को संतुलित करती है और कब्ज, अफारा, और पेट की ऐंठन से राहत देती है।

मुलेठी (Licorice):

मुलेठी में मौजूद ग्लिसिराइज़िन (Glycyrrhizin) पेट की परत को सुरक्षा प्रदान करता है और पाचन एंजाइम को बढ़ाकर digestion को सुधारता है। यह पेट की एसिडिटी और जलन को कम करने में बेहद प्रभावी है।

चित्रक (Plumbago Zeylanica):

चित्रक वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करने में मदद करता है। यह पाचन क्रिया को तेज करता है और पेट की सफाई में सहायक है।

लौंग, काली मिर्च और जीरा:

ये मसाले पेट को साफ रखने, गैस और अफारा को कम करने में मदद करते हैं। इनका नियमित सेवन पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखता है।

एसिडिटी जैसी समस्याओं के लिए आयुर्वेद एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प है। एंटासिड और अन्य दवाओं के साइड इफेक्ट्स से बचने के लिए प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का सहारा लें। ये न केवल राहत देती हैं, बल्कि आपके पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाती हैं।

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