AMU minority status: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर Supreme Court का हालिया निर्णय चर्चा का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 4:3 के बहुमत से शुक्रवार को इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जो भविष्य में अन्य शैक्षिक संस्थानों के लिए मार्गदर्शक बन सकता है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने AMU के minority status को लेकर कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला। BJP के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया का कहना है कि केंद्र सरकार अपने पक्ष को मजबूती से रखेगी, जबकि AMU के पूर्व छात्र और समर्थकों ने इस फैसले का स्वागत किया है।
AMU का Minority Status
AMU का अल्पसंख्यक दर्जा इस बात का प्रमाण है कि यह यूनिवर्सिटी मुस्लिम समुदाय के शैक्षणिक अधिकारों की रक्षा और प्रगति के उद्देश्य से संचालित है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देता है। इस दर्जे का सीधा असर यूनिवर्सिटी में admission quotas, आरक्षण और administrative autonomy पर पड़ता है, जो AMU के विशेष दर्जे की रक्षा करता है।
सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 1967 के अजीज बाशा मामले के निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि AMU को minority institution का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसे 1920 के AMU Act के तहत केंद्र सरकार ने स्थापित किया था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि किसी भी संस्थान का minority status सिर्फ इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता कि उसे एक कानून के तहत स्थापित किया गया है। अब यह तय किया गया है कि AMU का अल्पसंख्यक दर्जा इस पर निर्भर करेगा कि क्या इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था या नहीं।
1981 का संशोधन
1981 में संसद ने AMU Act में संशोधन किया था ताकि AMU को एक minority institution के रूप में पुनः मान्यता दी जा सके। लेकिन, 2006 में Allahabad High Court ने इस संशोधन को असंवैधानिक करार दिया था। तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था, जिसे 2019 में तीन जजों की बेंच ने सात जजों की संविधान पीठ को भेजा था।
सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले को एक नई बेंच को रेफर किया है, जो AMU के minority status की वैधता पर अंतिम निर्णय देगी। यह फैसला न सिर्फ AMU के लिए बल्कि देश के अन्य शैक्षिक संस्थानों के लिए भी एक मानक स्थापित करेगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत मिले अधिकार यूनिवर्सिटी पर भी लागू होते हैं।
इस निर्णय से यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस प्रकार के शैक्षिक संस्थान minority institution का दर्जा पाने के योग्य हैं और इसके लिए उन्हें किन मानकों का पालन करना होगा।
अब चीफ जस्टिस नई बेंच गठित करेंगे जो इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के मद्देनजर AMU के minority status की वैधता पर अंतिम निर्णय लेगी। इस फैसले का आने वाले समय में अन्य शैक्षिक संस्थानों के अधिकारों और minority status पर भी प्रभाव पड़ सकता है, जिससे यह भविष्य में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक साबित हो सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक वापसी: 2024 में फिर बने अमेरिकी राष्ट्रपति

A research-based writer, content strategist, and the voice behind Dhara Live. With 7+ years of experience in print and digital media, I specialize in creating stories that are not just informative, but also engaging, thought-provoking, and search-friendly.
Over the years, I’ve worked with media houses like Divya Himachal, created academic content for Chandigarh University, and written everything from YouTube explainers to press releases. But what drives me the most is writing content that sparks awareness, curiosity, and real conversations.
At Dhara Live, I focus on trending topics—from geopolitics, health, and finance to AI—all explained in details, the way we naturally speak and think. I believe every reader deserves content that is accurate, easy to understand, and never boring.