Latest News: हाल ही में, अप्रैल 2025 में RBI ने लगातार दूसरी बार रेपो रेट (RBI Repo Rate Cut 2025) में 25 बेसिस पॉइंट (0.25%) की कटौती की है, जिससे रेपो रेट अब 6% पर आ गया है। इसका मकसद था कि मार्केट में liquidity बढ़े, लोग ज्यादा खर्च करें और economy में demand बने। लेकिन ground reality ये है कि EMI भरने वालों को इसका सीधा फायदा नहीं मिला।
मान लीजिए आप एक salaried पर्सन हैं, आप पिछले दो साल से ₹45 लाख का होम लोन चुका रहे हैं, आपको लग रहा होगा कि रेपो रेट में कटौती हुई है, तो इससे आपकी EMI भी ₹1,000-₹1,500 रुपए कम हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि अक्सर बैंक से आपको ऐसा जवाब मिलेगा कि “आपका लोन MCLR से लिंक्ड है, और अभी reset cycle बाकी है।” यानी न राहत, न राहत की उम्मीद। इससे साफ है कि केवल RBI की नीति से कुछ नहीं होता, जब तक बैंक उसे जनता तक pass-through नहीं करते।
असल में जब किसी बैंक को short-term फंड की ज़रूरत होती है — जैसे कि सैलरी क्रेडिट करना हो, कैश की कमी हो या लोन देने के लिए पूंजी चाहिए — तब वह RBI के पास जाता है। RBI उस बैंक को कुछ दिनों के लिए पैसे देता है, और उस पर जो ब्याज लेता है, वही कहलाता है Repo Rate। यह RBI का सबसे अहम monetary tool है जिससे वो economy में liquidity (नकदी की उपलब्धता) और inflation (महंगाई) को कंट्रोल करता है। मान लीजिए अभी RBI का रेपो रेट 6% है। इसका मतलब है कि अगर HDFC या SBI जैसे बैंक RBI से ₹100 करोड़ उधार लेते हैं, तो उन्हें उस पर सालाना 6% ब्याज देना होगा। लेकिन अगर RBI इस दर को घटाकर 5.75% कर दे, तो बैंकों को वही ₹100 करोड़ सिर्फ 5.75% पर मिल जाएंगे। यानी बैंक को कम खर्च आएगा, और theoretically वो आपको भी कम ब्याज पर लोन देंगे।
EMI नहीं घटी? तो दिक्कत कहाँ है?
लेकिन सवाल ये है: जब RBI ने सस्ते में पैसा दिया है, तो फिर आपका होम लोन या कार लोन अब तक महंगा क्यों है? EMI क्यों नहीं घटी? इस साल RBI ने दो बार रेपो रेट में कटौती की, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में लोगों की EMI जस की तस बनी हुई है। इसका कारण है बैंकों की लोन रेट तय करने की methodology. जिससे ज्यादातर लोग अनजान होते हैं।
क्या आपका लोन MCLR है या EBLR? (MCLR vs EBLR Difference)
MCLR (Marginal Cost of Funds based Lending Rate): यह बैंक का internal interest rate सिस्टम है, जो उनके कुल लागत के बेस पर तय होता है! इसमें कई चीज़ें आती हैं, जैसे: बैंक द्वारा ग्राहकों को जो Fixed Deposits दिया गया है, उस पर कितना इंटरेस्ट दिया गया है, या Operational cost, जैसे कि कर्मचारियों की सैलरी, ब्रांच की बिजली-पानी, टेक्नोलॉजी आदि का खर्चा। इसमें बैंक की Risk Premium यानी कि लोन डिफॉल्ट होने का खतरा भी शामिल होता है। इस सब के आधार पर हर बैंक अपना एक internal interest rate तय करता है।
मान लो SBI एक ग्राहक को ₹50 लाख का लोन देता है। उस बैंक का FD रेट 6.5% है और बाकी खर्चा मिलाकर उनकी cost आती है – करीब 7.75%। तो वो अपने लोन पर MCLR सेट करता है 8.1%. देखा यहाँ पर बदलता है, पूरा मामला। लेकिन यह rate तुरंत नहीं बदलता। बैंक हर 6 या 12 महीने में इस rate को reset करता है। यह भी एक बड़ा कारण है कि अगर RBI ने रेपो रेट घटाया, तब भी आपकी EMI उसी समय नहीं घटेगी, जब तक reset period नहीं आता। यही कारण है कि कई ग्राहकों को रेपो रेट कम होने का असर महीनों बाद मिलता है। यह डिपेंड करता है बैंक के reset period पर, कुछ 6 महीने में भी रिसेट कर सकते हैं, और कुछ हो सकता है 1 साल बाद करें!
EBLR (External Benchmark Linked Lending Rate): RBI ने 2019 में बैंकों को निर्देश दिया कि नए फ्लोटिंग रेट लोन एक बाहरी बेंचमार्क से जोड़े जाएं — जैसे कि: RBI का रेपो रेट, 91-day treasury bill rate या 10-year government bond yield. इसका मतलब है कि जैसे ही रेपो रेट में बदलाव होता है, वैसे ही EBLR से जुड़े लोन की ब्याज दर भी डायरेक्ट बदल जाती है। ये पूरी तरह से transparent होता है और इसलिए ग्राहक को फौरन फायदा या नुकसान दिखाई देता है।
मान लो अगर आपने मार्च 2023 में ₹30 लाख का लोन EBLR (रेपो रेट) पर लिया है और RBI ने अप्रैल 2025 में रेपो रेट 0.25% घटाया, तो अगले महीने से ही आपको कम EMI देनी पड़ेगी! क्योंकि इसमें अकसर reset cycle छोटा होता है, जैसे 3 महीने! इसलिए, जिन ग्राहकों के लोन EBLR पर हैं, उन्हें रेपो रेट कटौती का फायदा जल्दी मिलता है। लेकिन जिनका लोन MCLR पर है, उन्हें हो सकता है 6 महीने या साल इंतजार करना पड़े।
RBI ने रेपो रेट घटाया, EBLR को हुआ फायदा
2025 की शुरुआत में, RBI ने दो बार — फरवरी और अप्रैल में — रेपो रेट में 25-25 बेसिस पॉइंट की कटौती की, यानी कुल 0.5% की राहत दी। इसका मतलब ये था कि बैंकों को RBI से सस्ता फंड मिलेगा और वो अपने ग्राहकों को सस्ते लोन देंगे। लेकिन ground level पर ऐसा नहीं हुआ। अप्रैल तक भी अधिकांश बैंकों का average MCLR (Marginal Cost of Funds Based Lending Rate) 9% के स्तर पर बना रहा। कुछ चुनिंदा बैंकों ने 0.1% की मामूली कटौती की, वो भी delay के साथ।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बैंक केवल रेपो रेट पर निर्भर नहीं होते। उनके लिए deposit interest (FDs पर ब्याज), branch operations, staff cost, risk factor—all मिलाकर कुल लागत बनती है। अगर FD रेट्स या ऑपरेशनल खर्च ज्यादा हैं, तो बैंक अपनी interest rate घटाने से कतराते हैं। MCLR-linked loans में rate reset हर 6 या 12 महीने में होता है। मान लीजिए आपने जून 2023 में ₹40 लाख का लोन MCLR पर लिया था, और आपकी reset cycle 12 महीने की है। तो भले ही अप्रैल 2025 में RBI ने रेट घटा दिया हो, आपकी EMI तब तक नहीं बदलेगी जब तक जून 2025 का reset ना हो। बैंक अपने profit margins को maintain करने के लिए जानबूझकर MCLR में कटौती slow pace पर करते हैं। अगर वो फौरन रेट कम कर दें, तो उन्हें ब्याज से कम कमाई होगी, जिससे उनका overall revenue impact होगा।
Existing customers के लिए rate कम करने में delay होता है, जबकि नए customers को कम rate का benefit दिया जाता है, ताकि market में competition में आगे रहा जा सके। जैसे ICICI बैंक ने नए होम लोन पर 8.75% का ऑफर दिया, लेकिन existing MCLR-linked लोन वालों की दर अभी भी 9.05% थी। इसलिए रेपो रेट घटने के बावजूद EMI में तुरंत राहत नहीं मिलती — और यही बैंकिंग सिस्टम की सबसे बड़ी चालाकी मानी जाती है।
किस बैंक में होगा Repo Rate घटने का फायदा?
RBI द्वारा अप्रैल 2025 में जारी किए गए लेटेस्ट आंकड़ों से एक चौंकाने वाला ट्रेंड सामने आया है! रिपोर्ट में साबित हुआ है कि सिर्फ 20–30% रेपो रेट कटौती का फायदा ग्राहकों तक पहुंचा है। RBI ने रेपो रेट में 0.5% की कटौती की, लेकिन बैंकों ने इसका पूरी तरह लाभ कस्टमर को नहीं दिया। कुछ बैंकों ने महज 0.1–0.2% तक ही लोन दरें घटाईं। इसका मतलब है कि ग्राहक जितनी राहत की उम्मीद कर रहे थे, उसका 70–80% हिस्सा कहीं और अटक गया — यानी बैंकों के मुनाफे में।
60% से ज्यादा लोन अब EBLR से जुड़े हैं: यह एक पॉजिटिव संकेत है, क्योंकि EBLR-linked लोन ज्यादा transparent होते हैं और रेपो रेट में बदलाव का असर तेज़ी से दिखता है। जैसे ही रेपो रेट घटा, इन ग्राहकों की EMI में जल्द फर्क दिखा। अगर किसी ने ICICI या Axis Bank से EBLR पर लोन लिया है, तो मार्च 2025 की कटौती का असर उन्हें अप्रैल-मई की EMI में दिख चुका होगा।
36% लोन अब भी MCLR based: यह वही लोन हैं जिनमें reset cycle और internal cost system के कारण देरी होती है। सरकारी बैंकों में 51% लोन अब भी MCLR पर आधारित हैं। इसका मतलब है कि वहाँ पुरानी प्रणाली अब भी चल रही है और ग्राहक को रेपो रेट का लाभ मिलने में देर लग रही है या मिल ही नहीं पा रहा। लेकिन प्राइवेट बैंकों में 13% लोन अब भी MCLR बेस्ड है, यानी अधिकतर प्राइवेट बैंक पहले ही EBLR सिस्टम पर शिफ्ट हो चुके हैं।यही वजह है कि सरकारी बैंक के ग्राहक अक्सर शिकायत करते हैं कि उनकी EMI कम क्यों नहीं हो रही, जबकि प्राइवेट बैंक ग्राहक जल्दी बदलाव देख रहे हैं।
EMI घटाने के Smart Tips
अब सवाल उठता है कि जब RBI रेपो रेट घटा चुका है, तो एक आम ग्राहक EMI में राहत कैसे पा सकता है? इसके लिए कुछ practical और informed कदम जरूरी हैं! Loan Structure समझें:
Fixed rate loan: इसमें ब्याज दर तय होती है और RBI की कटौती का कोई असर नहीं होता। मान लो अगर किसी ने 2021 में 7.5% की fixed rate पर ₹20 लाख का लोन लिया है, तो वो इंटरेस्ट रेट entire period में same रहेगा उसमें कोई चेंज नहीं होता।
Floating rate (MCLR): इस loan type में EMI घटती है, लेकिन delay के साथ। जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं Reset cycle काफी लम्बा होता है, इसलिए तुरंत फायदा नहीं मिलता, इसमें 6–12 महीने तक का समय लग सकता है।
Floating rate (EBLR): RBI के रेपो रेट से सीधे जुड़ा होने के कारण EMI में immediate बदलाव आता है। ये बेहतर option होता है अगर आप short term में फायदा चाहते हैं।
MCLR से EBLR पर कैसे switch करें?
अगर आपका लोन MCLR से जुड़ा है, तो आप अपने बैंक से कहकर उसे EBLR में convert करवा सकते हैं। यह process आसान होता है, लेकिन कुछ बैंक conversion fees या processing charges लेते हैं। तो आपको बस वो फीस चुकानी पड़ेगी। इसका फायदा यह होगा कि अगर किसी का ₹30 लाख का लोन MCLR पर 9% ब्याज से चल रहा है और EBLR पर वही 8.4% पर मिल रहा है, तो हर महीने ₹1,000–₹1,500 की EMI में राहत मिल जाएगी।
MCLR को EBLR में कन्वर्ट करते वक्त ये बातें ध्यान रखें। बैंक से साफ़ पता करें कि आपके लोन पर कितना इंटरेस्ट rate cut हुआ है, EMI में कितना actual फर्क पड़ा और अगला reset कब है? इन सवालों से आप न सिर्फ अपने loan terms को बेहतर समझेंगे, बल्कि बैंक को aware customer का pressure भी महसूस होगा — जिससे chances हैं कि आपको बेहतर offer मिले।
इसलिए केवल रेपो रेट कम होना ही पर्याप्त नहीं है, जब तक बैंक वह लाभ अपने ग्राहकों तक ट्रांसफर न करें। EMI का बोझ तभी घटेगा जब आप financially aware बनेंगे, अपने लोन को actively monitor करेंगे और बैंक से assertively बातचीत करेंगे। आज की knowledge-driven economy में passive रहना महंगा पड़ सकता है।
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