Elections In India: भारत की democracy को विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर कई सवाल उठाए गए हैं। क्या आज भारत का electoral process उतना ही free और fair है, जितना इसे होना चाहिए? इस रिपोर्ट का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया (Elections In India) से जुड़े challenges और concerns को समझना है।
Elections In India : Democracy at Risk?
भारत का लोकतांत्रिक इतिहास हमेशा एक “strong foundation” माना गया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, opposition parties और independent observers ने बार-बार आरोप लगाए हैं कि elections अब उतने transparent और fair नहीं रहे। 2024 के General Elections से पहले, यह debate और तेज हो गई थी। कई लोग सवाल उठा रहे थे कि क्या चुनावी प्रक्रिया बाहुबल और धनबल के नियंत्रण में आ गई है? Recent news और studies यह दिखाते हैं कि political manipulation और electoral malpractices बढ़ते जा रहे हैं, जो हमारे democratic structure को कमजोर कर सकते हैं .
हाल ही में हुए 2024 Haryana Assembly Elections के बाद Congress और opposition ने चुनाव की fairness पर गंभीर सवाल उठाए। Mallikarjun Kharge और Rahul Gandhi जैसे नेताओं ने EVMs पर doubts उठाए और कहा कि results जनता की वास्तविक स्थिति को reflect नहीं कर रहे। उनका कहना था कि EVMs में malfunction और battery-level issues की शिकायतें आईं, जिससे election results manipulate किए गए। Congress ने इसे democracy की हार बताया और कहा कि चुनावी प्रक्रिया में trust घटता जा रहा है। वहीं, Election Commission of India (ECI) ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि election पूरी तरह से transparent थे और EVM system सुरक्षित है।
Reality of the Allegations
हालांकि विपक्ष ने कई बार EVMs की reliability पर सवाल उठाए हैं, Election Commission का दावा है कि ऐसा कोई substantial proof नहीं है जो इस आरोप को साबित कर सके। ये सवाल सिर्फ एक state तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह बढ़ते political distrust और electoral process पर गहराते सवालों का हिस्सा हैं। जब तक इन सवालों का स्पष्ट और transparent जवाब नहीं मिलेगा, जनता और opposition का विश्वास electoral system पर कम होता रहेगा
Historical Context of India’s Electoral Process
भारत की आज़ादी के बाद की बात करें तो 1951-52 में भारत का पहला आम चुनाव देश के लिए एक democratic milestone था। उस समय, लगभग 17.3 करोड़ लोग eligible voters थे, जिनमें से लगभग 45% ने अपने वोट का इस्तेमाल किया। यह चुनाव Ballot Papers से हुआ था, और वोटर्स की मदद के लिए राजनीतिक पार्टियों को प्रतीक चिन्ह दिए गए ताकि अनपढ़ लोग भी वोट डाल सकें। यह चुनाव 4 महीने (अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 तक) में पूरा हुआ। देश के geographical size और lack of infrastructure के कारण चुनाव कई phase में हुए थे। Challenges उस समय बड़े थे—जैसे illiteracy, lack of infrastructure and lack of awareness। लेकिन फिर भी, इस चुनाव ने भारत में democracy की जड़ें मजबूत कीं। Election Commission ने पारदर्शी चुनाव कराने की पूरी जिम्मेदारी निभाई, और इसी कारण दुनिया ने इसे एक सफल democratic experiment के रूप में देखा था।
हालांकि, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस चुनाव के बाद भी कई challenges और सुधारों की जरूरत महसूस की गई, खासकर 1975 के आपातकाल (The Emergency of 1975) के दौरान democratic values पर उठे सवालों के बाद।
Election Commission of India (ECI) का role हमेशा से बहुत अहम रहा है, लेकिन हाल के दिनों में इसके neutrality और independence पर कई बार सवाल उठाए गए हैं। EVMs (Electronic Voting Machines) को लेकर बहुत controversy रही है। 2019 के General Elections के बाद कई political parties ने आरोप लगाए थे कि EVM tampering की जा रही है, खासकर opposition parties ने BJP पर unfair advantage देने के आरोप लगाए। हालाँकि, Supreme Court ने यह कहा था कि EVM और VVPAT की प्रणाली सुरक्षित है, लेकिन public trust अब भी कम है।
EVMs को लेकर जो सबसे बड़ा issue है, वह है tampering का डर। कई parties का दावा है कि EVMs को हैक करना संभव है। हालांकि, Election Commission और कई technical experts का कहना है कि ऐसा नहीं है। इसके बावजूद, 2024 के चुनावों में भी विपक्षी दलों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया है। ये concerns तब और बढ़े जब Supreme Court ने कहा कि EVMs और VVPATs को 100% audit करने की ज़रूरत नहीं है।
Challenges to Free and Fair Elections in India
Money Power and Criminalization of Politics
भारत में चुनावों में money power और criminalization बहुत बड़ी समस्या बन चुके हैं। ADR (Association for Democratic Reforms) की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनावों में 46% MPs के खिलाफ criminal cases दर्ज हैं, जिनमें से 27% MPs serious crimes जैसे murder, assault, और rape से जुड़े हुए हैं, जैसे Anant Kumar Hegde (BJP, Karnataka) – हत्या का मामला; Atiq Ahmed (SP, UP) – किडनैपिंग और हत्या के आरोपों का सामना कर चुके हैं। यही नहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में, 233 MPs (यानी करीब 43%) ने खुद पर आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। इसकी तुलना में, 2014 में 185 MPs (34%), 2009 में 162 MPs (30%) और 2004 में 125 MPs यानी 23% MPs का कोई न कोई क्राइम रिकॉर्ड था। यह डेटा ADR (Association for Democratic Reforms) की रिपोर्ट का है। सवाल यह है कि क्या राजनीति में criminalization का बढ़ता ट्रेंड आम जनता के लिए सही है? क्या ऐसे लोग अपनी कानून और पोजीशन का मिसयूज नहीं करेंगे?
Vote Buying and Electoral Violence
चुनावों में vote-buying और electoral violence भी बढ़ता जा रहा है। कई राज्यों जैसे West Bengal, Bihar, और UP में चुनावों के दौरान violence की घटनाएं आम हो गई हैं। 2019 के चुनावों में, कई राजनीतिक दलों पर वोट खरीदने और intimidation के आरोप लगे थे। भारत में vote buying और electoral manipulation की समस्या गंभीर है। एक सर्वे के अनुसार, 41.34% voters ने माना कि उन्हें cash, liquor, gifts जैसे material inducements दिए जाते हैं, जो उनकी वोटिंग पर असर डालते हैं। यह सर्वे Association for Democratic Reforms (ADR) द्वारा किया गया, जिसमें यह सामने आया कि इन लालचों के कारण कई voters अपना फैसला बदलते हैं, खासकर चुनावी क्षेत्रों में जहां पार्टी कैडर का दबदबा कम होता है।
Role of Media in Electoral Process
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 505 के तहत ‘फर्ज़ी/झूठी ख़बर/अफवाह का प्रसार’ करने वाले लोगों के विरुद्ध दर्ज मामलों की संख्या में 214% की वृद्धि हुई। Social media platforms जैसे WhatsApp, Facebook, और Twitter misinformation फैलाने के सबसे बड़े माध्यम बने हैं, जहां राजनीतिक दल और विभिन्न vested interests इसका दुरुपयोग कर रहे हैं। Platforms जैसे WhatsApp पर 35 करोड़ users के होने से misinformation बड़ी आसानी से फैल जाती है, जिससे communal riots, lynchings और दूसरे गंभीर सामाजिक अपराध होते हैं। Social Media Matters और Times of India द्वारा किए गए एक survey में यह पाया गया कि 80% first-time voters ने महसूस किया कि वे social media पर fake news से इन्फ्लुएंस हो रहे हैं। MIT की रिसर्च ने पाया कि fake news तीन प्रमुख तरीकों से फैलाई जाती है—पुरानी images को out of context post करना, photoshopped images का इस्तेमाल, और गलत आंकड़े या quotes का इस्तेमाल।
फेक न्यूज़ कितनी खतरनाक हो सकती हैं, इसे इससे समझ सकते हैं कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे का एक बड़ा कारण एक fake video था, जिसने communal tensions को भड़काया था। वहीँ Karnataka के 2018 विधानसभा चुनाव में भी fake news ने rival parties के खिलाफ गलत जानकारी फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
Government और Social Media Companies
हालांकि Election Commission और social media platforms ने कई प्रयास किए हैं, जैसे कि misinformation को flag करना, लेकिन यह अब भी inadequate साबित हो रहा है। Platforms पर transparency की कमी और algorithm-driven content moderation एक बड़ा चैलेंज है।
Judiciary ने कई बार चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन judiciary पर भी कई बार आरोप लगे हैं कि वह impartial नहीं रह पाई है। उदाहरण के लिए, हाल ही में, election commissioners की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ECI को सरकार के नियंत्रण से बाहर होना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद, critics का कहना है कि judicial interventions काफी नहीं हैं, खासकर जब बात political corruption की आती है।
Electoral Reforms | Elections In India
India में कई reforms की जरूरत है, ताकि elections को और निष्पक्ष बनाया जा सके। इनमें सबसे जरूरी है campaign finance reform, जिससे पैसे का मिसयूज कण्ट्रोल हो सके। इसके अलावा, proportional representation system जैसे models पर भी विचार किया जा सकता है, जो voters की voice को बेहतर represent कर सके। Electoral bonds को लेकर भी transparency जरूरी है, ताकि पॉलिटिशियन पैसे का मिसयूज करके लोगों को इन्फ्लुएंस न कर सकें।
free और fair elections के लिए जरूरी है कि ECI, judiciary, और media अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाएं। जनता का trust तभी कायम रहेगा, जब चुनावी प्रक्रिया (Elections In India) में सुधार होंगे और जनता की आवाज़ को सही मायने में सुना जाएगा।
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