Delhi Yamuna Pollution: हाल ही में दिल्ली के मंत्री प्रवेश वर्मा ने कहा कि वो यमुना के पानी का रंग आने वाले 3 साल में बदल देंगे। यानी दिल्ली में भाजपा सरकार ने इसे 3 साल में साफ़ करने के टारगेट रखा है। लेकिन क्या यह पॉसिबल है या सिर्फ हवाई ब्यान? यमुना नदी भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है और इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व बहुत बड़ा है। यह उत्तराखंड के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से होते हुए प्रयागराज में गंगा में मिलती है। लेकिन आज की स्थिति देखें तो दिल्ली में यमुना का 22 किलोमीटर लंबा हिस्सा ‘मृत नदी’ (dead river) करार दिया गया है। यह वही नदी है जिसे पवित्र माना जाता है, लेकिन अब इसमें नहाना तो दूर, छूना भी ख़तरनाक हो गया है। अब सवाल ये उठता है कि क्या सच में सरकार 3 साल में यमुना का रंग बदल सकती है? चलिए विस्तार से समझते हैं।
Delhi Yamuna Pollution
इसकी सबसे बड़ी समस्या गंदा पानी और सीवेज है। शायद आप नहीं जानते, लेकिन दिल्ली का हर दिन 3,800+ मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) सीवेज यमुना में बहता है। यही नहीं, दिल्ली के करीब 22 नाले बिना किसी ट्रीटमेंट के यमुना में गिरते हैं। इस गंदे पानी की ट्रीटमेंट की बात करें, तो दिल्ली में 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) हैं, और वो भी अपनी फुल कैपेसिटी में काम नहीं करते हैं।
दिल्ली ही नहीं, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हजारों फैक्ट्रियां बिना ट्रीटमेंट के केमिकल्स छोड़ती हैं। इनमें लेड, मर्करी, आर्सेनिक, और क्रोमियम जैसी जहरीली धातुएं होती हैं। हर साल हजारों टन कचरा, प्लास्टिक, धार्मिक अवशेष और मृत पशु-पक्षी यमुना में डाले जाते हैं। पानी में दिखने वाली सफेद जहरीली झाग फैक्ट्रियों और डिटर्जेंट से आती है।
करोड़ों खर्च हुए, लेकिन सफाई नहीं
यमुना की सफाई को लेकर पहले भी कई योजनाएं बनीं, लेकिन कोई ठोस बदलाव नहीं आया। यमुना एक्शन प्लान (YAP) 1993 से अब तक चल रहा था। इसकी शुरुआत 1993 में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) की मदद से हुई थी। और 6,500+ करोड़ रुपए खर्च हुए, लेकिन रिजल्ट आपके सामने है।
नमामि गंगे परियोजना (2014 – वर्तमान) से भी यमुना में कुछ फर्क नहीं आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे गंगा और यमुना की सफाई के लिए लॉन्च किया था, लगभग 20,000+ करोड़ खर्च हुए, फिर भी यमुना जहरीली है। अगर 30 साल में करोड़ों खर्च करने के बाद भी यमुना साफ नहीं हुई, तो 3 साल में कैसे होगी?
मान लिया कि केजरीवाल सरकार यमुना को साफ़ नहीं कर पाई, लेकिन भारत में सेण्टर लेवल पर भी तो कई संगठन इसके लिए काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इसकी भी जिम्मेदारी थी गंगा और उसकी सहायक नदियों की सफाई करवाना। या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), जिसका काम है पानी की क्वालिटी को मॉनिटर करना और जरूरत पड़ने पर इंडस्ट्रीज पर प्रदूषण को कण्ट्रोल करने के लिए कानून बनाना। अगर दिल्ली सरकार इसमें फेल हो रही थी तो इससे पहले भाजपा यानी सेण्टर गवर्नमेंट ने कोई इनिशिएटिव क्यों नहीं लिया?
भारत सरकार के लिए सबक
लन्दन की फेमस थेम्स नदी का नाम आपने सुना होगा, इसे 1950 के दशक में “Dead River” घोषित किया गया था। लेकिन आज सख्त कानून, इंडस्ट्रियल वेस्ट पर पाबंदी और वाटर ट्रीटमेंट की वजह से यह अब स्वच्छ है। इसके अलावा फ्रांस की सीन नदी 1990 के दशक में बहुत प्रदूषित थी, जिसके बाद फ्रांस सरकार ने सख्त नीतियां अपनाई और वाटर वेस्ट ट्रीटमेंट को मेंडटरी किया। वहीँ राइन नदी (यूरोप) की हालत तो इतनी ख़राब थी, कि 1986 में एक केमिकल एक्सीडेंट के बाद, इसमें लाइफ बिलकुल ख़त्म हो चुकी थी, इसका पानी मछलियों या अन्य जीवों के जिन्दा रहने लायक नहीं था, लेकिन यूरोपीय देशों ने 20 साल में इसे फिर से सही कर दिखाया।
100% सीवेज ट्रीटमेंट और नई STPs
सरकार को ऐसा सिस्टम बनाना पड़ेगा कि सभी नालों का पानी पहले ट्रीटमेंट प्लांट में जाए, फिर नदी में। इसके अलावा नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएं और मौजूदा प्लांट्स को पूरी कैपेसिटी के साथ चालू किया जाए। और अगर इंडस्ट्रीज के लिए क़ानून बने हैं, तो फैक्ट्रियों की रियल-टाइम मॉनिटरिंग हो। भारी जुर्माने और लाइसेंस रद्द करने के कड़े कानून लागू किए जाएं।
रियलिटी यह है कि अगर सरकार सिर्फ पानी का रंग बदलने की बात कर रही है, तो यह 3 साल में हो सकता है ऐसा हो भी जाए, लेकिन असली यमुना की सफाई कितने साल और लेगी, कहना मुश्किल है। 3 साल बाद देखना होगा कि भाजपा का यह दावा सिर्फ जुमला तो नहीं था!
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