Karoshi: Workload and Deaths – क्या काम हमारी जिंदगी से ज्यादा जरूरी है?

Workload and Deaths: जापान में ओवरवर्क से होने वाली मौतों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द Karoshi आज दुनिया भर में काम के बढ़ते तनाव और अत्यधिक काम के दबाव का प्रतीक बन चुका है। यह शब्द अब केवल जापान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारत सहित कई देशों में Karoshi के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अत्यधिक काम (Overwork), लंबे घंटे (long hours) और कार्यस्थल का दबाव लोगों की जिंदगी पर गहरा असर डाल रहा है। Forbes के इस आर्टिकल के अनुसार World Health Organization की 2021 की report में यह कहा गया है कि बहुत ज्यादा काम करने से सालाना 7 लाख 45 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई। ये लोग स्ट्रोक और दिल के दौरे से मरे। 20 सालों में, यानी 2000 से 2016 के बीच, दिल की बीमारियों से होने वाली मौतें 42% और स्ट्रोक से होने वाली मौतें 19% बढ़ गईं।

EY इंडिया में 26 वर्षीय अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की मृत्यु

हाल ही में, Ernst & Young (EY) इंडिया में काम करने वाली 26 वर्षीय Anna Sebastian Perayil की असामयिक मृत्यु ने पूरे कॉरपोरेट जगत को झकझोर कर रख दिया। अन्ना ने 2023 में अपनी CA परीक्षा पास की थी और चार महीने पहले ही EY की पुणे स्थित SR Batliboi ऑडिट टीम में काम करना शुरू किया था। काम का अत्यधिक दबाव उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ गया।
अन्ना की मौत के बाद, Big Four कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के लिए कई employee-friendly उपायों को लागू करने की बात कही, ताकि काम के प्रेशर को कम किया जा सके। लेकिन क्या ये उपाय काफी हैं? ये सवाल अब सभी के दिमाग में घूम रहा है, क्योंकि वर्कलोड और मेंटल हेल्थ का यह पहला केस नहीं है।

Stress and Overwork

सितंबर 2024 में एक और उदाहरण सामने आया जब 25 वर्षीय सॉफ्टवेयर डेवलपर और Soshals app के फाउंडर Kritarth Mittal को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। Kritarth लगातार all-nighters कर रहे थे, पांच घंटे से कम सो रहे थे और एक अनहेल्दी डाइट फॉलो कर रहे थे। उनका शरीर इस तनाव को बर्दाश्त नहीं कर सका और उन्हें अस्पताल जाना पड़ा।

कृतार्थ ने सोशल मीडिया पर अस्पताल से अपनी तस्वीर साझा की और अपने फॉलोअर्स को hustle culture के अंधेरे पक्ष से सावधान किया। उन्होंने लिखा, “Hustle culture comes with a cost — some you incur right away and some over decades. The choice is yours, I’m just here to show you the ugly side of it so you don’t get swayed easy. This is me after pulling all-nighters, sleeping for less than 5-6 hours, and no diet plan.”

यह एक कड़वी सच्चाई है कि आज की युवा पीढ़ी में यह सोच गहराई से बैठ चुकी है कि अगर वे ज्यादा काम करेंगे, तो सफलता जल्दी मिलेगी। लेकिन यह संस्कृति लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है।

Karoshi: Workload and Deaths – Is work more important than our life?

फरवरी 2024 में, Zerodha के CEO Nithin Kamath को हल्का स्ट्रोक आया। इस स्ट्रोक के कारण उन्होंने महसूस किया कि लगातार काम करना, तनाव और अन्य जिम्मेदारियों के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा था। नितिन ने खुद यह स्वीकार किया कि उनके पिता की मृत्यु, खराब नींद, अत्यधिक थकावट और डिहाइड्रेशन इसके पीछे के मुख्य कारण थे।

उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, “I’ve gone from having a big droop in the face and not being able to read or write to having a slight droop but being able to read and write more. From being absent-minded to more present-minded. So, 3 to 6 months for full recovery.”

नितिन का यह अनुभव यह बताने के लिए काफी है कि अत्यधिक काम और स्ट्रेस केवल उन लोगों को प्रभावित नहीं करता जो फिट नहीं होते; यह उन लोगों पर भी असर डालता है जो फिट और सेहतमंद होते हैं।

News18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, HDFC Bank की लखनऊ स्थित विभूति खंड शाखा में एक अतिरिक्त उपाध्यक्ष अपने कार्यस्थल पर बेहोश हो गईं, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। यह घटना बताती है कि कॉर्पोरेट जगत में काम के प्रेशर का किस हद तक असर हो रहा है।

दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं

काम के अत्यधिक दबाव और तनाव का असर केवल भारत तक सीमित नहीं है। WHO (World Health Organization) के अनुसार, हर 8 में से 1 व्यक्ति दुनियाभर में किसी न किसी मानसिक विकार से जूझ रहा है। 2019 में, लगभग 970 मिलियन लोग Mental disorders के शिकार थे, जिसमें anxiety और depression सबसे आम थे। COVID-19 महामारी के बाद यह संख्या और भी बढ़ गई, जिससे Mental Health एक गंभीर समस्या बन गई है।

महामारी के बाद, anxiety में 26% और major depressive disorders में 28% की वृद्धि देखी गई। यह वृद्धि केवल एक साल में हुई, जो यह दर्शाती है कि कैसे वैश्विक संकटों का असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। हालांकि कई प्रभावी इलाज और उपचार के विकल्प मौजूद हैं, लेकिन फिर भी अधिकांश लोग सही समय पर इलाज तक पहुंच नहीं पाते हैं।

2019 में, 301 मिलियन लोग anxiety disorder से पीड़ित थे, जिनमें 58 मिलियन बच्चे और किशोर भी शामिल थे। वहीं, 280 मिलियन लोग depression का सामना कर रहे थे, जिनमें 23 मिलियन बच्चे और किशोर शामिल थे। इसके अलावा, 40 मिलियन लोग bipolar disorder के शिकार थे, जो डिप्रेशन और मैनिक सिम्पटम्स के बीच लगातार झूलते रहते हैं।

Schizophrenia, जो एक गंभीर Mental disorder है, लगभग 24 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है, यानी दुनियाभर में हर 300 में से 1 व्यक्ति Schizophrenia से पीड़ित है। इसके साथ ही, 14 मिलियन लोग eating disorders से पीड़ित थे, जिनमें लगभग 3 मिलियन बच्चे और किशोर शामिल थे।

नौकरी में असुरक्षा: तनाव का एक और कारण

काम का तनाव अब केवल Mental Health तक सीमित नहीं है; job security को लेकर भी चिंता बढ़ रही है। ADP Research Institute की ‘People at Work 2023: A Global Workforce View’ रिपोर्ट के अनुसार, 32,000 से अधिक कर्मचारियों के सर्वे में पाया गया कि Gen Z (18-24 वर्ष के) के 50% लोग अपनी नौकरी में सुरक्षित महसूस नहीं करते; जो कि 55 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के अनुपात से दोगुना है, क्योंकि इस उम्र के सिर्फ 24% लोग Job insecurity महसूस कर रहे थे।

इस सर्वे में यह भी पाया गया कि 76% भारतीय कर्मचारियों ने stressful work environment की शिकायत की है, और 49% ने बताया कि इसका सीधा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, जिससे उनकी उत्पादकता भी प्रभावित हो रही है।

Corporate Culture और कर्मचारियों का मानसिक स्वास्थ्य

2022 में, 35 वर्षीय HR प्रोफेशनल Sonia Ganguly ने अपनी high-paying नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उनके इस निर्णय ने उनके आसपास के लोगों को हैरान कर दिया। लोग उनसे लगातार पूछते रहे, “आप ऐसा कैसे कर सकती हैं?”

Sonia ने इस पर कहा, “कई चुनौतियां थीं और मैं अपनी भावनाओं को अपने काम से अलग नहीं कर पाती थी। Heavy workload, long travel, less autonomy and long working hours इस तनाव का मुख्य कारण थे। परिणामस्वरूप, मेरे पास आराम करने का कोई समय नहीं था क्योंकि मैं कभी भी काम के विचारों को छोड़ नहीं पाती थी। मैं सो नहीं पाती थी क्योंकि मुझे अगले दिन उठकर काम पर जाने में डर लगता था।”

Sonia का अनुभव दर्शाता है कि केवल नौकरी की सुरक्षा ही नहीं, बल्कि corporate culture और काम का दबाव भी कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है।

Karoshi: Workload and Deaths – Is work more important than our life?

GI Group India की एक रिपोर्ट के अनुसार, Corporate India में 42.5% लोग depression या anxiety से जूझ रहे हैं। यह आंकड़ा बहुत बड़ा है और इससे साफ है कि कंपनियों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और सुधार की जरूरत है।
GOQii (एक Indian fitness technology कंपनी) की वार्षिक India Fit Report 2022-2023 में पाया गया कि 26% भारतीयों ने अपनी वर्तमान कार्य स्थिति से तनाव महसूस करने की बात कही। इसमें Long working hours, lack of job security, low pay and increasing competition जैसे कारणों को तनाव के मुख्य कारण बताया गया।

Mental Disorders के लक्षण और संकेत

काम का अत्यधिक दबाव और तनाव शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक समस्याओं के रूप में प्रकट होता है। यहां कुछ प्रमुख लक्षण और संकेत दिए गए हैं:
1. फिजिकल लक्षण:

  • Chronic Fatigue: लगातार थकान, चाहे कितनी भी आराम कर लें।
  • Sleep Disturbances: अनिद्रा, नींद न आना या अत्यधिक सोना।
  • Headaches और Migraines: लगातार सिरदर्द।
  • Digestive Issues: पेट की समस्याएं जैसे अल्सर, IBS या लगातार उल्टी की समस्या।
  • High Blood Pressure: लंबे समय तक तनाव के कारण हाई ब्लड प्रेशर या हार्ट अटैक का खतरा

2. मानसिक लक्षण:

  • Anxiety और Panic Attacks: लगातार चिंता, बेचैनी, और भय के साथ घबराहट।
  • Depression: लंबे समय तक उदासी, निराशा, और जीवन में किसी भी चीज़ में रुचि न होना।
  • Irritability या Mood Swings: छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आना या लगातार मूड का बदलना।
  • Low Self-Esteem: अपने काम की क्षमता पर संदेह करना।
  • Burnout: मानसिक थकान, काम से दूरी बनाना और असफलता का अनुभव करना।

3. व्यवहार में बदलाव:

  • Increased Absenteeism: बीमार होने या थकान के कारण काम से अनुपस्थित रहना।
    Decreased Work Performance: काम में ध्यान केंद्रित न कर पाना, भूलने की आदत, और काम को समय पर पूरा न कर पाना।
  • Isolation: सहकर्मियों, दोस्तों, और परिवार से दूरी बनाना।
  • Unhealthy Coping Mechanisms: शराब, ड्रग्स, या कैफीन का अत्यधिक सेवन।
  • Excessive Working: देर तक ऑफिस में रहना, वीकेंड पर काम करना, या कभी भी काम से डिस्कनेक्ट न होना।

4. भावनात्मक और व्यक्तिगत संबंधों में तनाव:

  • Conflict: सहकर्मियों या परिवार के साथ बहस, गलतफहमियां, और काम के कारण घर में तनाव।
    Loss of Interest in Personal Life: निजी जीवन में रुचि खो देना, जैसे शौक, एक्सरसाइज़, या सामाजिक गतिविधियों में भाग न लेना।
  • Feelings of Loneliness या Being Trapped: लोगों के बीच होते हुए भी अकेलापन महसूस करना या यह सोचना कि काम से निकलने का कोई रास्ता नहीं है।
  • Suicidal Thoughts: गंभीर मामलों में, कुछ लोग काम के दबाव से खुद को स्थायी रूप से बाहर निकालने की इच्छा प्रकट करते हैं, जो आत्महत्या के विचार का संकेत हो सकता है।

5. Verbal और Non-Verbal Warning Signs:

  • Feeling Overwhelmed: “मैं अब और नहीं कर सकता,” जैसे बातें कहना।
  • Neglecting Personal Appearance: अपनी स्वच्छता या दिखावे की परवाह न करना, जो मानसिक थकावट का संकेत हो सकता है।

SDG 3 का मुख्य उद्देश्य सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान करना है, लेकिन workplace stress, burnout and karoshi करोशी जैसी घटनाएं सीधे लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। Hustle culture and excessive working hours SDG 8 का उल्लंघन करते हैं, जो sustainable and inclusive economic growth और सभी के लिए dignified और productive employment को बढ़ावा देने की बात करता है। SDG 8 का लक्ष्य 8.5 गरिमापूर्ण काम के अवसर प्रदान करने पर जोर देता है, जो सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए सुरक्षित और स्वस्थ काम का माहौल सुनिश्चित करता है।

Under Article 21 of the Indian Constitution, भारतीय नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। इसमें न केवल शारीरिक जीवन का अधिकार शामिल है, बल्कि गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है। Excessive work pressure and mental stress सीधे इस अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि यह कर्मचारियों के जीवन की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। वहीँ आर्टिकल 39 (ई) और 43 भी सभी नागरिकों को सम्मानजनक काम और उचित जीवन जीने की स्थिति प्रदान करने की बात करता है।

Job pressure और ‘Hustle Culture’

आज के कॉरपोरेट जगत में Hustle Culture एक सामान्य रूटीन बन चुका है। ज्यादातर प्रोफेशनल कर्मचारी 9-10 घंटे की शिफ्ट करने के बाद भी अपने काम के घंटों को बढ़ाते रहते हैं। यह कल्चर इस सोच को प्रमोट करता है कि ज्यादा काम करने से ही Higher positions and higher salaries तक पहुंचा जा सकता है। यह इस विचारधारा पर आधारित है कि अगर आप कड़ी मेहनत करेंगे, तो कुछ भी हासिल कर सकते हैं।

Karoshi: Workload and Deaths – Is work more important than our life?

लेकिन इसके साथ ही, Hustle Culture एक गंभीर समस्या को जन्म दे रहा है—बर्नआउट। Burnout केवल थकावट नहीं है, यह भावनात्मक, मानसिक, और शारीरिक रूप से खुद को टूटे हुए महसूस करने की स्थिति है। Toxic Positivity का रवैया इस कल्चर का हिस्सा बन गया है, जहां लोग सिर्फ सफल होने की दौड़ में बिना अपने मानसिक स्वास्थ्य की परवाह किए काम करते रहते हैं।

यह हमारे हाथ में है कि हम किस रास्ते का चुनाव करते हैं—क्या हम अपनी ज़िंदगी को काम के दबाव में खत्म होने देंगे, या हम संतुलन बनाते हुए एक स्वस्थ जीवन शैली की ओर बढ़ेंगे?

काम जरूर करना चाहिए, लेकिन उस हद तक नहीं कि काम हमारी जिंदगी पर हावी हो जाए। अगर आप या आपके आस-पास कोई व्यक्ति इस तरह के तनाव से गुजर रहा है, तो उसे समय रहते पहचानें और मदद लें।

याद रखें, “आपका काम आपकी जिंदगी का हिस्सा है, आपकी जिंदगी नहीं।”

Sources:

https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6339454/

https://www.indiatoday.in/trending-news/story/mumbai-entrepreneur-kritarth-mittal-hospitalised-after-embracing-a-hustle-culture-read-full-story-2592675-2024-09-03

https://www.indiatoday.in/health/story/zerodha-ceo-nithin-kamath-suffered-mild-stroke-getting-my-treadmill-count-2507298-2024-02-26

file:///C:/Users/poojachoudhary9816/Downloads/Suicide%20rates%20in%20India%20and%20its%20implications%20for%20National%20Mental%20Health%20Programme.pdf

https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/mental-disorders

https://economictimes.indiatimes.com/jobs/hr-policies-trends/five-in-10-employees-in-india-worry-about-job-security-survey/articleshow/101563596.cms?from=mdr

https://in.gigroup.com/all-in-the-mind-state-of-mental-health-of-corporate-india/

https://goqii.com/blog/india-is-still-stressed-says-goqiis-annual-india-fit-report-2022-2023/

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